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आ जु॑होता स्वध्व॒रं शी॒रं पा॑व॒कशो॑चिषम्। आ॒शुं दू॒तम॑जि॒रं प्र॒त्नमीड्यं॑ श्रु॒ष्टी दे॒वं स॑पर्यत॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā juhotā svadhvaraṁ śīram pāvakaśociṣam | āśuṁ dūtam ajiram pratnam īḍyaṁ śruṣṭī devaṁ saparyata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। जु॒हो॒त॒। सु॒ऽअ॒ध्व॒रम्। शी॒रम्। पा॒व॒कऽशो॑चिषम्। आ॒शुम्। दू॒तम्। अ॒जि॒रम्। प्र॒त्नम्। ईड्य॑म्। श्रु॒ष्टी। दे॒वम्। स॒प॒र्य॒त॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:9» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर का ही ध्यान करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! तुम लोग जैसे (स्वध्वरम्) हिंसा न करने योग्य (शीरम्) विद्युत् रूप से सब जगह भरे हुए (पावकशोचिषम्) शुद्ध प्रकाशवाले (आशुम्) शीघ्रगामी (दूतम्) दूत के तुल्य देशान्तर में समाचार पहुँचानेवाले (अजिरम्) फेंकनेहारे (प्रत्नम्) प्राचीन (ईड्यम्) खोजने योग्य विद्युत् रूप अग्नि का (आ, जुहोत) अच्छे प्रकार ग्रहण करो वैसे ही स्वयंप्रकाशरूप सर्वत्र व्यापक (देवम्) उत्तम गुण-कर्म-स्वभावयुक्त सब आनन्द देनेवाले परमात्मा की (श्रुष्टी) शीघ्र (सपर्यत) सेवा करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो बिजुली के तुल्य व्यापक, स्वयंप्रकाशरूप, अविद्यादि दोषों का नाश करनेवाला, सनातन, अनादि काल से प्रशंसा करने योग्य परमात्मा है, उसीका नित्य ध्यान करो॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वर एव ध्येय इत्याह।

अन्वय:

हे विद्वांसो यूयं स्वध्वरं शीरं पावकशोचिषमाशुं दूतमजिरं प्रत्नमीड्यं विद्युदाख्यं वह्निमाजुहोत तथैव स्वप्रकाशं सर्वत्र व्यापकं परमात्मानं देवं श्रुष्टी सपर्य्यत ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (जुहोत) गृह्णीत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (स्वध्वरम्) सुष्ठ्वहिंसनीयम् (शीरम्) विद्युद्रूपेण सर्वत्र शयानम् (पावकशोचिषम्) पवित्रकरदीप्तिम् (आशुम्) सद्योगामिनम् (दूतम्) दूतवद्देशान्तरे समाचारप्रापकम् (अजिरम्) गन्तारं प्रक्षेप्तारम् (प्रत्नम्) प्राक्तनम् (ईड्यम्) अध्यन्वेषणीयम् (श्रुष्टी) सद्यः (देवम्) दिव्यगुणकर्मस्वभावं सर्वानन्दप्रदम् (सपर्य्यत) परिचरत ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यो विद्युद्वद्व्यापकः स्वप्रकाशोऽविद्यादिदोषहन्ता सनातनोऽनादिः प्रशंसनीयः परमात्माऽस्ति तमेव ध्यायत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जो विद्युतप्रमाणे व्यापक, स्वयंप्रकाशस्वरूप, अविद्या इत्यादी दोषांचा नाश करणारा, सनातन अनादि काळापासून प्रशंसा करण्यायोग्य परमात्मा आहे त्याचेच नित्य ध्यान करा. ॥ ८ ॥