वांछित मन्त्र चुनें

स॒सृ॒वांस॑मिव॒ त्मना॒ग्निमि॒त्था ति॒रोहि॑तम्। ऐनं॑ नयन्मात॒रिश्वा॑ परा॒वतो॑ दे॒वेभ्यो॑ मथि॒तं परि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sasṛvāṁsam iva tmanāgnim itthā tirohitam | ainaṁ nayan mātariśvā parāvato devebhyo mathitam pari ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒सृ॒वांस॑म्ऽइव। त्मना॑। अ॒ग्निम्। इ॒त्था। ति॒रःऽहि॑तम्। आ। ए॒न॒म्। न॒य॒त्। मा॒त॒रिश्वा॑। प॒रा॒ऽवतः॑। दे॒वेभ्यः॑। म॒थि॒तम्। परि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:9» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर आत्मज्ञान विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (मातरिश्वा) वायु (परावतः) दूर देश से (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (मथितम्) मन्थन किये (तिरोहितम्) परिच्छिन्न (अग्निम्) अग्नि को (ससृवांसमिव) प्राप्त होते हुए मनुष्य के समान (परि, आ, नयत्) सब ओर से सब प्रकार प्राप्त कराता है (इत्था) इसप्रकार उस (एनम्) अग्नि को (त्मना) आत्मा से तुम लोग विशेष कर जानो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जैसे प्रयत्न के साथ मन्थन आदि से उत्पन्न हुए अग्नि को वायु बढ़ाता और दूर पहुँचाता है तथा अग्नि प्राप्त हुए पदार्थों को जलाता है और दूरस्थ पदार्थों को नहीं जलाता, इसी प्रकार ब्रह्मचर्य्य, विद्या, योगाभ्यास, धर्मानुष्ठान और सत्पुरुषों के सङ्ग से साक्षात् किया आत्मा और परमात्मा सब दोषों को जला के सुन्दर प्रकाशित ज्ञान को प्रगट करता है ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरात्मज्ञानविषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा मातरिश्वा परावतो देवेभ्यो मथितं तिरोहितमग्निं ससृवांसमिव पर्य्यानयदित्था तमेनं त्मना यूयं विजानीत ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ससृवांसमिव) प्राप्नुवन्तमिव (त्मना) आत्मना (अग्निम्) पावकम् (इत्था) अनेन हेतुना (तिरोहितम्) परिच्छिन्नम् (आ) (एनम्) (नयत्) नयति (मातरिश्वा) वायुः (परावतः) विप्रकृष्टाद्देशात् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (मथितम्) (परि) सर्वतः ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्या यथा प्रयत्नेन मन्थनादिना जातमग्निं वायुर्वर्धयति दूरे च गमयति वह्निश्च प्राप्तान् पदार्थान् दहति नैव तिरोहितान्। एवं ब्रह्मचर्य्यविद्यायोगाभ्यासधर्मानुष्ठान-सत्पुरुषसङ्गैः साक्षात्कृत आत्मा परमात्मा च सर्वान् दोषान् दग्ध्वा सुप्रकाशितज्ञानं जनयति ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे माणसांनो! जसा मंथनाने प्रयत्नपूर्वक उत्पन्न झालेल्या अग्नीला वायू वाढवितो व दूर पोचवितो व जवळच्या पदार्थांना जाळतो तसे दूर असलेल्या पदार्थांना जाळत नाही, त्याचप्रकारे ब्रह्मचर्य, विद्या, योगाभ्यास, धर्मानुष्ठान, सत्पुरुषांचा संग याद्वारे साक्षात्कार झालेला आत्मा व परमात्मा सर्व दोषांना जाळून सुंदर ज्ञान प्रकट करतो. ॥ ५ ॥