काय॑मानो व॒ना त्वं यन्मा॒तॄरज॑गन्न॒पः। न तत्ते॑ अग्ने प्र॒मृषे॑ नि॒वर्त॑नं॒ यद्दू॒रे सन्नि॒हाभ॑वः॥
kāyamāno vanā tvaṁ yan mātṝr ajagann apaḥ | na tat te agne pramṛṣe nivartanaṁ yad dūre sann ihābhavaḥ ||
काय॑मानः। व॒ना। त्वम्। यत्। मा॒तॄः। अज॑गन्। अ॒पः। न। तत्। ते॒। अ॒ग्ने॒। प्र॒ऽमृषे॑। नि॒ऽवर्त॑नम्। यत्। दू॒रे। सन्। इ॒ह। अभ॑वः॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
विद्यार्थी किसको पाकर सुखी होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
विद्यार्थी कं प्राप्य सुखी भवतीत्याह।
हे अग्ने कायमानः सँस्त्वं यन्मातॄरपोऽजगन्यन्निवर्त्तनं दूरे प्रक्षिपेर्मङ्गलायेहाभवस्तत्तस्मात्ते सकाशादहं वना प्रमृषे मत्तस्त्वं दूरे न भवेः ॥२॥