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ये वृ॒क्णासो॒ अधि॒ क्षमि॒ निमि॑तासो य॒तस्रु॑चः। ते नो॑ व्यन्तु॒ वार्यं॑ देव॒त्रा क्षे॑त्र॒साध॑सः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye vṛkṇāso adhi kṣami nimitāso yatasrucaḥ | te no vyantu vāryaṁ devatrā kṣetrasādhasaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। वृ॒क्णासः॑। अधि॑। क्षमि॑। निऽमि॑तासः। य॒तऽस्रु॑चः। ते। नः॒। व्य॒न्तु॒। वार्य॑म्। दे॒व॒ऽत्रा। क्षे॒त्र॒ऽसाध॑सः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:8» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:4» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्या से क्या होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (वृक्णासः) अविद्या से पृथक् हुए (निमितासः) सदैव सत्य-सत्य ज्ञानवाले (यतस्रुचः) जिन्होंने यज्ञ साधन नियत किया और (क्षमि) (अधि) पृथिवी पर वर्त्तमान हैं (ते) वे (देवत्रा) विद्वानों में (क्षेत्रसाधसः) खेतों को साधनेवाले (नः) हमारे (वार्य्यम्) स्वीकार के योग्य ज्ञान को (व्यन्तु) प्राप्त हों ॥७॥
भावार्थभाषाः - जैसे कुल्हाड़े से काटे हुए वृक्ष फिर नहीं जमते, वैसे ही विद्या से नष्ट हुई अविद्या नहीं बढ़ती ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्यया किं भवतीत्याह।

अन्वय:

ये वृक्णासो निमितासो यतस्रुचः क्षम्यधि वर्त्तन्ते ते देवत्रा क्षेत्रसाधसो नो वार्य्यं व्यन्तु ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) (वृक्णासः) छिन्नाविद्याः (अधि) (क्षमि) पृथिव्याम् (निमितासः) नित्यमितज्ञानाः (यतस्रुचः) यता स्रुग् यज्ञसाधनं यैस्ते ऋत्विजः (ते) (नः) अस्माकम् (व्यन्तु) प्राप्नुवन्तु (वार्य्यम्) वर्तुमर्हं विज्ञानम् (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु (क्षेत्रसाधसः) ये क्षेत्राणि साध्नुवन्ति ते ॥७॥
भावार्थभाषाः - यथा कुठारेण छिन्ना वृक्षा न रोहन्ति तथैव विद्यया क्षीणा अविद्या न वर्द्धते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे कुऱ्हाडीने कापलेले वृक्ष पुन्हा जोडता येत नाहीत तसेच विद्येने नष्ट झालेली अविद्या पुन्हा वाढत नाही. ॥ ७ ॥