वांछित मन्त्र चुनें

दैव्या॒ होता॑रा प्रथ॒मा न्यृ॑ञ्जे स॒प्त पृ॒क्षासः॑ स्व॒धया॑ मदन्ति। ऋ॒तं शंस॑न्त ऋ॒तमित्त आ॑हु॒रनु॑ व्र॒तं व्र॑त॒पा दीध्या॑नाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

daivyā hotārā prathamā ny ṛñje sapta pṛkṣāsaḥ svadhayā madanti | ṛtaṁ śaṁsanta ṛtam it ta āhur anu vrataṁ vratapā dīdhyānāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दैव्या॑। होता॑रा। प्र॒थ॒मा। नि। ऋ॒ञ्जे॒। स॒प्त। पृ॒क्षासः॑। स्व॒धया॑। म॒द॒न्ति॒। ऋ॒तम्। शंस॑न्तः। ऋ॒तम्। इत्। ते। आ॒हुः॒। अनु॑। व्र॒तम्। व्र॒त॒ऽपा। दीध्या॑नाः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:7» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सप्त) सात (पृक्षासः) कोमल स्वभाववाले जन (स्वधया) अन्न से (मदन्ति) आनन्द करते हैं (ऋतम्) सत्य की (शंसन्तः) स्तुति करते हैं (ऋतम्) सत्य (व्रतम्) आचरण को (इत्) ही (ते) वे (व्रतपाः) सत्याचरण के रक्षक (दीध्यानाः) विद्यादि सद्गुणों से प्रकाशमान पुरुष (अनु, आहुः) अनुकूल उपदेश करते हैं और (दैव्या) विद्वानों में कुशल (प्रथमा) प्रख्यात (होतारा) विद्या के देनेवाले दो विद्वान् अध्यापक उपदेशक भी अनुकूल उपदेश करते हैं उनको मैं (नि) निरन्तर (ऋञ्जे) प्रसिद्ध करूँ ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग धर्मयुक्त व्यवहार से धन धान्यों को प्राप्त हो सत्य को उपदेश कर उसीका आचरण करके सबको शिक्षा करते हैं, वे सबका सत्कार करने योग्य हों ॥८॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरुपदेशकविषयमाह।

अन्वय:

ये सप्तपृक्षासः स्वधया मदन्ति ऋतं शंसन्त ऋतं व्रतमित्ते व्रतपा दीध्याना अन्वाहुर्दैव्या प्रथमा होतारा च तानहं न्यृञ्जे ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दैव्या) विद्वत्सु कुशलौ (होतारा) विद्याया दातारौ (प्रथमा) प्रख्यातौ (नि) (ऋञ्जे) प्रसाध्नुयाम् (सप्त) (पृक्षासः) आर्द्रीभूताः (स्वधया) अन्नेन (मदन्ति) हृष्यन्ति (ऋतम्) सत्यम् (शंसन्तः) स्तुवन्तः (ऋतम्) सत्यम् (इत्) एव (ते) (आहुः) उपदिशन्ति (अनु) (व्रतम्) सत्याचरणम् (व्रतपा) सत्याचाररक्षकाः (दीध्यानाः) विद्यादिसद्गुणैः प्रकाशमानाः ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो धर्म्येण व्यवहारेण धनधान्यानि प्राप्य सत्यमुपदिश्य तदेवाऽऽचर्य्य सर्वान् शिक्षन्ते ते सत्कर्त्तव्याः स्युः ॥८॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक धर्मयुक्त व्यवहाराने धनधान्य प्राप्त करून सत्याचा उपदेश करून त्याचेच आचरण करून सर्वांना शिक्षण देतात ते सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ८ ॥