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अ॒ध्व॒र्युभिः॑ प॒ञ्चभिः॑ स॒प्त विप्राः॑ प्रि॒यं र॑क्षन्ते॒ निहि॑तं प॒दं वेः। प्राञ्चो॑ मदन्त्यु॒क्षणो॑ अजु॒र्या दे॒वा दे॒वाना॒मनु॒ हि व्र॒ता गुः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhvaryubhiḥ pañcabhiḥ sapta viprāḥ priyaṁ rakṣante nihitam padaṁ veḥ | prāñco madanty ukṣaṇo ajuryā devā devānām anu hi vratā guḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ध्व॒र्युऽभिः॑। प॒ञ्चऽभिः॑। स॒प्त। विप्राः॑। प्रि॒यम्। र॒क्ष॒न्ते॒। निऽहि॑तम्। प॒दम्। वेः। प्राञ्चः॑। म॒द॒न्ति॒। उ॒क्षणः॑। अ॒जु॒र्याः। दे॒वाः। दे॒वाना॑म्। अनु॑। हि। व्र॒ता। गुरिति॒ गुः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:7» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उपदेशक लोग किसके सदृश क्या करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (प्राञ्चः) प्रकृष्ट विद्यायुक्त (उक्षणः) सुख फैलानेहारे (अजुर्य्याः) शरीर आत्मा की जीर्ण अवस्था से रहित (देवाः) विद्वान् लोग (हि) ही (देवानाम्) विद्वानों के (व्रता) सत्यभाषणादि उत्तम स्वभावों को (अनु, गुः) अनुकूलतापूर्वक प्राप्त हों वे (अध्वर्य्युभिः) यज्ञ रचनेवाले (पञ्चभिः) होता, अध्वर्यु, उद्गाता, ब्रह्मा और सभ्य इन पाँच ऋत्विजों और पत्नी यजमानों के साथ वर्त्तमान (सप्त) सात (विप्राः) बुद्धिमान् लोग (वेः) व्यापक परमेश्वर के (प्रियम्) प्रिय (निहितम्) स्थित (पदम्) प्राप्त करने योग्य स्वरूप की (रक्षन्ते) रक्षा करते हैं वे ही (मदन्ति) आनन्दित होते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे सात ऋत्विज लोग यज्ञ करके प्रजाओं को सुखी करते हैं, वैसे ही उपदेशक विद्वान् लोग सुशील धार्मिक हो के अध्यापन और उपदेश से सब मनुष्यों को आनन्दित करते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोपदेशकाः किंवत् किं कुर्वन्तीत्याह।

अन्वय:

ये प्राञ्च उक्षणोऽजुर्या देवा हि देवानां व्रतानुगुस्तेऽध्वर्य्युभिः पञ्चभिः पत्नीयजमानाभ्यां च सह वर्त्तमानाः सप्त विप्रा वेः प्रियं निहितं पदं रक्षन्ते त एव मदन्ति ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्युभिः) अध्वरं निष्पादकैः (पञ्चभिः) होत्राध्वर्यूद्गाद्रातृब्रह्मसभ्यैर्ऋत्विग्भिः (सप्त) पत्नीयजमानाभ्यां सहिताः सप्तसङ्ख्याकाः (विप्राः) मेधाविनः (प्रियम्) (रक्षन्ते)। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (निहितम्) स्थितम् (पदम्) प्रापणीयम् (वेः) व्यापकस्य परमेश्वरस्य (प्राञ्चः) प्रकृष्टविद्यायुक्ताः (मदन्ति) (उक्षणः) सुखसेचकाः (अजुर्याः) शरीरात्मजीर्णावस्थारहिताः (देवाः) विद्वांसः (देवानाम्) विदुषाम् (अनु) (हि) यतः (व्रता) सत्यभाषणादिशीलानि (गुः) गच्छेयुः ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यथा सप्तर्त्विजो यज्ञं निष्पाद्य प्रजाः सुखयन्ति तथैवोपदेशका विद्वांसः सुशीला धार्मिका भूत्वाऽध्यापनोपदेशाभ्यां सर्वान्मनुष्यानानन्दयन्ति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे सात ऋत्विक् यज्ञ करून प्रजेला सुखी करतात तसे उपदेशक विद्वान लोकांनी सुशील धार्मिक बनून अध्यापन व उपदेश यांनी सर्व माणसांना आनंदित करावे. ॥ ७ ॥