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जा॒नन्ति॒ वृष्णो॑ अरु॒षस्य॒ शेव॑मु॒त ब्र॒ध्नस्य॒ शास॑ने रणन्ति। दि॒वो॒रुचः॑ सु॒रुचो॒ रोच॑माना॒ इळा॒ येषां॒ गण्या॒ माहि॑ना॒ गीः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jānanti vṛṣṇo aruṣasya śevam uta bradhnasya śāsane raṇanti | divorucaḥ suruco rocamānā iḻā yeṣāṁ gaṇyā māhinā gīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

जा॒नन्ति॑। वृष्णः॑। अ॒रु॒षस्य॑। शेव॑म्। उ॒त। ब्र॒ध्नस्य॑। शास॑ने। र॒ण॒न्ति॒। दि॒वः॒ऽरुचः॑। सु॒ऽरुचः॑। रोच॑मानाः। इळा॑। येषा॑म्। गण्या॑। माहि॑ना। गीः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:7» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कौन महात्मा होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (येषाम्) जिनकी (गण्या) गणना करने योग्य (इडा) स्तुति और (माहिना) सत्कार करने योग्य (गीः) वाणी है वे (रोचमानाः) रुचिवाले हुए (दिवोरुचः) विज्ञानरूप प्रकाश में रुचि करनेवाले (सुरुचः) सुन्दर प्रीति के उत्पादक विद्वान् लोग (रणन्ति) शब्द करते हैं तथा (वृष्णः) बलिष्ठ (अरुषस्य) घोड़े के तुल्य वेगयुक्त (ब्रध्नस्य) महान् राजपुरुष की (शासने) शिक्षा में (शेवम्) सुख (उत) और विज्ञान को (जानन्ति) जानते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानों की शिक्षा में स्थिर होते हैं, वे प्रशंसित विद्वान् होकर महात्मा होते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ के महात्मानो भवन्तीत्याह।

अन्वय:

येषां गण्येळा माहिना गीर्वर्त्तते ते रोचमाना दिवोरुचः सुरुचो रणन्ति वृष्णोऽरुषस्य ब्रध्नस्य शासने शेवमुत विज्ञानं जानन्ति ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (जानन्ति) (वृष्णः) बलिष्ठस्य (अरुषस्य) अश्वस्येव (शेवम्) सुखम्। शेवमिति सुखना०। निघं०२। ३। (उत) अपि (ब्रध्नस्य) महतः (शासने) शिक्षायामाज्ञायां वा (रणन्ति) शब्दायन्ते (दिवोरुचः) विज्ञानप्रकाशे रुचिकरः (सुरुचः) सुप्रीतिसंपादकाः (रोचमानाः) रुचिमन्तः (इळा) स्तोतव्या वाक् (येषाम्) (गण्या) सङ्ख्यातुं योग्या (माहिना) सत्कर्त्तव्या (गीः) वाणी ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विदुषां शिक्षायां स्थिरा भवन्ति ते प्रशंसिता विद्वांसो भूत्वा महान्तो जायन्ते ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वानांच्या शिक्षणात स्थिर होतात ती प्रशंसित विद्वान बनून महान बनतात. ॥ ५ ॥