वांछित मन्त्र चुनें

दि॒वक्ष॑सो धे॒नवो॒ वृष्णो॒ अश्वा॑ दे॒वीरा त॑स्थौ॒ मधु॑म॒द्वह॑न्तीः। ऋ॒तस्य॑ त्वा॒ सद॑सि क्षेम॒यन्तं॒ पर्येका॑ चरति वर्त॒निं गौः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

divakṣaso dhenavo vṛṣṇo aśvā devīr ā tasthau madhumad vahantīḥ | ṛtasya tvā sadasi kṣemayantam pary ekā carati vartaniṁ gauḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दि॒वक्ष॑सः। धे॒नवः॑। वृष्णः॑। अश्वाः॑। दे॒वीः। आ। त॒स्थौ॒। मधु॑ऽमत्। वह॑न्तीः। ऋ॒तस्य॑। त्वा॒। सद॑सि। क्षे॒म॒ऽयन्त॑म्। परि॑। एका॑। च॒र॒ति॒। व॒र्त॒निम्। गौः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:7» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को कैसी वाणी का सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! जो (ऋतस्य) सत्य की (सदसि) सभा में (दिवक्षसः) प्रकाश को प्राप्त हो व्याप्त हुई (वृष्णः) बलिष्ठ पुरुष के (अश्वाः) शीघ्रगामी घोड़ों के समान (देवीः) दिव्यस्वरूप (मधुमत्) कोमल विज्ञानवाले उस सुख को (वहन्तीः) प्राप्त कराती हुई (धेनवः) वाणी (क्षेमयन्तम्) रक्षा करते हुए (त्वा) आप को (एका) एक (गौः) अपनी कक्षा में चलनेवाली भूमि (वर्त्तनिम्) मार्ग को (परि, चरति) सब ओर से चलती हुई सी (आ, तस्थौ) स्थित होती उन वाणियों को आप यथावत् जानो ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे असहाय पृथिवी अपने कक्षा मार्ग में नित्य चलती है, वैसे ही सभ्यजनों की वाणी नियम से मिथ्याभाषण को छोड़ सत्य मार्ग में चलती हैं। जो ऐसी वाणी का सेवन करते हैं, उनकी कुछ भी हानि नहीं होती ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कीदृशी वाक् सेव्येत्याह।

अन्वय:

हे विद्वन् या ऋतस्य सदसि दिवक्षसो वृष्णोऽश्वादेवीर्मधुमद्वहन्तीर्धेनवो वाचः क्षेमयन्तं त्वैका गौर्वर्त्तनिं परिचरती वाऽऽतस्थौ तास्त्वं यथावद्विजानीहि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवक्षसः) दीप्तिं प्राप्य व्याप्ताः (धेनवः) वाचः (वृष्णः) बलिष्ठस्य (अश्वाः) आशुगामिनस्तुरङ्गा इव (देवीः) दिव्यस्वरूपाः (आ) (तस्थौ) समन्तात् तिष्ठति (मधुमत्) मधुराणि विज्ञानानि वर्त्तन्ते यस्मिँस्तत् (वहन्तीः) सुखं प्रापयन्त्यः (ऋतस्य) सत्यस्य (त्वा) त्वाम् (सदसि) सभायाम् (क्षेमयन्तम्) रक्षयन्तम् (परि) सर्वतः (एका) असहाया (चरति) गच्छति (वर्त्तनिम्) वर्त्तन्ते यस्मिँस्तं मार्गम् (गौः) या गच्छति सा भूमिः ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽसहाया पृथिवी स्वकक्षामार्गं नित्यं चलति तथैव सभ्यजनानां वाचो नियमेन मिथ्याभाषणं विहाय सत्यमार्गे गच्छन्ति य ईदृशीं वाणीं सेवन्ते न तेषां किञ्चिदकुशलं जायते ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पृथ्वी आपल्या कक्षेत नित्य चालते तशी सभ्य लोकांची वाणी मिथ्याभाषण सोडून नियमित सत्य मार्गाने चालते. जे अशा वाणीचे सेवन करतात, त्यांचे काहीही नुकसात होत नाही. ॥ २ ॥