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यो विश्वा॒भि वि॒पश्य॑ति॒ भुव॑ना॒ सं च॒ पश्य॑ति। स नः॑ पू॒षावि॒ता भु॑वत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo viśvābhi vipaśyati bhuvanā saṁ ca paśyati | sa naḥ pūṣāvitā bhuvat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। विश्वा॑। अ॒भि। वि॒ऽपश्य॑ति। भुव॑ना। सम्। च॒। पश्य॑ति। सः। नः॒। पू॒षा। अ॒वि॒ता। भु॒व॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब इस अगले मन्त्र में परमात्मा के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो जगदीश्वर (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवना) जीव, लोक वा वस्तुओं को (अभि) सन्मुख (विपश्यति) अनेक प्रकार से देखता है (सम्, पश्यति) मिले हुए देखता है (सः) वह (नः) हम लोगों का (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (अविता) रक्षक (भुवत्) होवैं (च) और जिससे हम लोग निरन्तर वृद्धि को प्राप्त होवें ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो सबका रचने देखने और कर्मों के फल देनेवाला न्यायाधीश ईश्वर है, वही हम लोगों की रक्षा करने और वृद्धि करनेवाला होवै, ऐसी हम सब लोग अभिलाषा करैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ परमात्मविषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यो जगदीश्वरो विश्वा भुवनानि विपश्यति सं पश्यति स नः पूषाऽविता भुवत्। येन च वयं सततं वर्धेमहि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) परमात्मा (विश्वा) सर्वाणि (अभि) आभिमुख्ये (विपश्यति) विविधतया प्रेक्षते (भुवना) सर्वाणि भूतानि लोकान् वस्तूनि वा (सम्) (च) (पश्यति) (सः) (नः) अस्माकम् (पूषा) पुष्टिकरः (अविता) रक्षिता (भुवत्) भूयात् ॥९॥
भावार्थभाषाः - यः सर्वस्य विधाता द्रष्टा कर्मणां फलप्रदाता न्यायाधीश ईश्वरोऽस्ति स एवाऽस्माकं रक्षको वर्षको भूयादिति सर्वे वयमभिलषेम ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सर्वांना निर्माण करणारा, पाहणारा, कर्माचे फळ देणारा, न्यायाधीश ईश्वर आहे तोच आमचे रक्षण करणारा व वृद्धी करणारा आहे अशी आम्ही सर्वांनी इच्छा बाळगावी. ॥ ९ ॥