वांछित मन्त्र चुनें

गृ॒णा॒ना ज॒मद॑ग्निना॒ योना॑वृ॒तस्य॑ सीदतम्। पा॒तं सोम॑मृतावृधा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gṛṇānā jamadagninā yonāv ṛtasya sīdatam | pātaṁ somam ṛtāvṛdhā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गृ॒णा॒ना। ज॒मत्ऽअ॑ग्निना। योनौ॑। ऋ॒तस्य॑। सी॒द॒त॒म्। पा॒तम्। सोम॑म्। ऋ॒त॒ऽवृ॒धा॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:18 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:11» मन्त्र:8 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:18


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतावृधा) सत्य के बढ़ानेवाले (गृणाना) स्तुति करते हुए अध्यापक और उपदेशक आप दोनों (जमदग्निना) नेत्र अर्थात् प्रत्यक्ष से (ऋतस्य) सत्य आचरण के (योनौ) स्थान में निरन्तर (सीदतम्) वसो और (सोमम्) ऐश्वर्य्य की (पातम्) रक्षा करो ॥१८॥
भावार्थभाषाः - वे ही अध्यापक और उपदेशक होने के योग्य हैं कि जो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से पृथिवी को लेकर परमेश्वरपर्य्यन्त पदार्थों का साक्षात्कार करके सत्यविद्या के आचरण की वृद्धि जिनको प्रिय, जो धर्मयुक्त मार्ग में जावैं, वे सत्कार करने के योग्य होवैं ॥१८॥ इस सूक्त में मित्र अध्यापक पढ़नेवाले श्रोता उपदेशक परमात्मा विद्वान् प्राण और उदान आदि के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्वसूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, ऐसा जानना चाहिये ॥ यह तीसरे मण्डल में बासठवाँ सूक्त पाँचवाँ अनुवाक, तीसरे अष्टक में ग्यारहवाँ वर्ग और तृतीय मण्डल समाप्त हुआ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे ऋतावृधा गृणाना मित्रावरुणौ युवां जमदग्निना ऋतस्य योनौ सततं सीदतं सोमं पातम् ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गृणाना) स्तुवन्तौ (जमदग्निना) चक्षुषा प्रत्यक्षेण (योनौ) गृहे (ऋतस्य) सत्याचारस्य (सीदतम्) वसतम् (पातम्) रक्षतम् (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् (ऋतावृधा) सत्यवर्द्धकौ ॥१८॥
भावार्थभाषाः - त एवाऽध्यापकोपदेशका भवितुमर्हन्ति ये प्रत्यक्षादिभिः प्रमाणैः पृथिवीमारभ्य परमेश्वरपर्य्यन्तान् पदार्थान्त्साक्षात्कृत्वा सत्यविद्याचरणवृद्धिप्रिया धर्म्येण पथा गच्छेयुस्ते सत्कर्त्तुमर्हाः स्युरिति ॥१८॥ अत्र मित्राऽध्यापकाऽध्येतृश्रोत्रुपदेशकपरमात्मविद्वत्प्राणोदानादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति तृतीये मण्डले द्विषष्टितमं सूक्तं पञ्चमोऽनुवाकस्तृतीयाष्टक एकादशो वर्गस्तृतीयञ्च मण्डलं समाप्तम् ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - तेच अध्यापक व उपदेशक होण्यायोग्य असतात, जे प्रत्यक्ष इत्यादी प्रमाणांनी पृथ्वीपासून परमेश्वरापर्यंत पदार्थांचा साक्षात्कार करतात. सत्याचरणप्रिय असून धर्ममार्गाने जातात त्यांचाच सत्कार केला पाहिजे. ॥ १८ ॥