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तत्स॑वि॒तुर्वरे॑ण्यं॒ भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tat savitur vareṇyam bhargo devasya dhīmahi | dhiyo yo naḥ pracodayāt ||

पद पाठ

तत्। स॒वि॒तुः। वरे॑ण्यम्। भर्गः॑। दे॒वस्य॑। धी॒म॒हि॒। धियः॑। यः। नः॒। प्र॒ऽचो॒दया॑त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! सब हम लोग (यः) जो (नः) हम लोगों की (धियः) बुद्धियों को (प्रचोदयात्) उत्तम गुण-कर्म और स्वभावों में प्रेरित करै उस (सवितुः) सम्पूर्ण संसार के उत्पन्न करनेवाले और सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य से युक्त स्वामी और (देवस्य) सम्पूर्ण ऐश्वर्य के दाता प्रकाशमान सबके प्रकाश करनेवाले सर्वत्र व्यापक अन्तर्यामी के (तत्) उस (वरेण्यम्) सबसे उत्तम प्राप्त होने योग्य (भर्गः) पापरूप दुःखों के मूल को नष्ट करनेवाले प्रभाव को (धीमहि) धारण करैं ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सबके साक्षी, पिता के सदृश वर्त्तमान, न्यायेश, दयालु, शुद्ध, सनातन, सबके आत्माओं के साक्षी परमात्मा की ही स्तुति और प्रार्थना करके उपासना करते हैं, उनको कृपा का समुद्र सबसे श्रेष्ठ परमेश्वर, दुष्ट आचरण से पृथक् करके श्रेष्ठ आचरण में प्रवृत्त करा और पवित्र तथा पुरुषार्थयुक्त करके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त कराता है ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्याः सर्वे वयं यो नो धियः प्रचोदयात्तस्य सवितुर्देवस्य तद्वरेण्यं भर्गो धीमहि ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) (सवितुः) सकलजगदुत्पादकस्य समग्रैश्वर्य्ययुक्तस्येश्वरस्य (वरेण्यम्) सर्वेभ्य उत्कृष्टं प्राप्तुं योग्यम् (भर्गः) भृज्जन्ति पापानि दुःखमूलानि येन तत् (देवस्य) सकलैश्वर्यप्रदातुः प्रकाशमानस्य सर्वप्रकाशकस्य सर्वत्र व्याप्तस्याऽन्तर्यामिणः (धीमहि) दधीमहि (धियः) प्रज्ञाः (यः) (नः) अस्माकम् (प्रचोदयात्) सद्गुणकर्मस्वभावेषु प्रेरयतु ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सर्वसाक्षिणं पितृवद्वर्त्तमानं न्यायेशं दयालुं शुद्धं सनातनं सर्वात्मसाक्षिकं परमात्मानमेव स्तुत्वा प्रार्थयित्वोपासते तान् कृपानिधिः परमगुरुर्दुष्टाचारान्निवर्त्य श्रेष्ठाचारे प्रवर्त्तयित्वा शुद्धान् सम्पाद्य पुरुषार्थयित्वा धर्मार्थकाममोक्षान् प्रापयति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सर्वांचा साक्षी, पित्याप्रमाणे असणारा, न्यायी, दयाळू, शुद्ध सनातन, सर्वांच्या आत्म्याचा साक्षी अशा परमेश्वराची स्तुती, प्रार्थना व उपासना करतात त्यांना कृपासागर, सर्वात श्रेष्ठ परमेश्वर, दुष्ट आचरणापासून पृथक करून श्रेष्ठ आचरणामध्ये प्रवृत्त करतो. पवित्र व पुरुषार्थयुक्त करून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त करवितो. ॥ १० ॥