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इन्द्र॑स्य स॒ख्यमृ॒भवः॒ समा॑नशु॒र्मनो॒र्नपा॑तो अ॒पसो॑ दधन्विरे। सौ॒ध॒न्व॒नासो॑ अमृत॒त्वमेरि॑रे वि॒ष्ट्वी शमी॑भिः सु॒कृतः॑ सुकृ॒त्यया॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrasya sakhyam ṛbhavaḥ sam ānaśur manor napāto apaso dadhanvire | saudhanvanāso amṛtatvam erire viṣṭvī śamībhiḥ sukṛtaḥ sukṛtyayā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑स्य। स॒ख्यम्। ऋ॒भवः॑। सम्। आ॒न॒शुः॒। मनोः॑। नपा॑तः। अ॒पसः॑। द॒ध॒न्वि॒रे॒। सौ॒ध॒न्व॒नासः॑। अ॒मृ॒त॒ऽत्वम्। आ। ई॒रि॒रे॒। वि॒ष्ट्वी। शमी॑भिः। सु॒ऽकृतः॑। सु॒ऽकृ॒त्यया॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:60» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सर्वाधीश परमात्मा की मित्रता का फल अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (ऋभवः) बुद्धिमान् लोग (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त परमात्मा की (सख्यम्) मित्रता को (सम्, आनशुः) उत्तम प्रकार प्राप्त होवैं तथा जिस (मनोः) मनन करनेवाले का (नपातः) नहीं गिरना होता उसके लिये (अपसः) कर्मों को (दधन्विरे) धारण करते हैं वे (सौधन्वनासः) उत्तमज्ञान के युक्त करनेवाले (शमीभिः) कर्मों के साथ (विष्ट्वी) कर्म को करके (सुकृत्यया) धर्म की क्रिया से (सुकृतः) उत्तमकर्म करनेवाले होते हुए (अमृतत्वम्) मोक्षपदवी को (आ, ईरिरे) प्राप्त होते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमेश्वर में प्रीति और उसकी आज्ञा के भङ्ग होने से भय तथा धर्म का आचरण करते हैं, वे ही मोक्ष पदवी को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सर्वाधीशस्य परमात्मनः सखित्वफलमाह।

अन्वय:

य ऋभव इन्द्रस्य सख्यं समानशुर्यस्य मनोर्नपातोऽस्मा अपसो दधन्विरे ते सौधन्वनासः शमीभिर्विष्ट्वी कृत्वा सुकृत्यया सुकृतः सन्तोऽमृतत्वमेरिरे ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) परमैश्वर्ययुक्तस्य परमात्मनः (सख्यम्) मित्रत्वम् (ऋभवः) मेधाविनः (सम्) (आनशुः) सम्यक् प्राप्नुयुः। अत्राऽपि व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (मनो) मननशीलस्य (नपातः) न विद्यते पातो यस्य (अपसः) कर्माणि (दधन्विरे) दधति (सौधन्वनासः) शोभनज्ञानस्य पुत्राः (अमृतत्वम्) (आ) (ईरिरे) प्राप्नुवन्ति (विष्ट्वी) कर्म (शमीभिः) कर्मभिः (सुकृतः) ये सुष्ठु कुर्वन्ति ते (सुकृत्यया) धर्मक्रियया ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये परमेश्वरे प्रीतिं तदाज्ञाभङ्गाद्भयं धर्म्यकर्माचरणं कुर्वन्ति त एव मोक्षमाप्नुवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक परमेश्वरावर प्रेम करतात व त्याच्या आज्ञा भंग झाल्यास भय बाळगतात व धर्माचे आचरण करतात तेच मोक्ष प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥