अ॒भीक॑ आसां पद॒वीर॑बोध्यादि॒त्याना॑मह्वे॒ चारु॒ नाम॑। आप॑श्चिदस्मा अरमन्त दे॒वीः पृथ॒ग्व्रज॑न्तीः॒ परि॑ षीमवृञ्जन्॥
abhīka āsām padavīr abodhy ādityānām ahve cāru nāma | āpaś cid asmā aramanta devīḥ pṛthag vrajantīḥ pari ṣīm avṛñjan ||
अ॒भीके॑। आ॒सा॒म्। प॒द॒ऽवीः। अ॒बो॒धि॒। आ॒दि॒त्याना॑म्। अ॒ह्वे॒। चारु॑। नाम॑। आपः॑। चि॒त्। अ॒स्मै॒। अ॒र॒म॒न्त॒। दे॒वीः। पृथ॑क्। व्रज॑न्तीः। परि॑। सी॒म्। अ॒वृ॒ञ्ज॒न्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी ईश्वर के गुणों का उपदेश अगले मन्त्र में कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरीश्वरगुणानाह।
हे मनुष्या येन जगदीश्वरेणासामादित्यानां च पदवीरबोधि यस्य चारु नाम यस्मिँश्चिद् व्रजन्तीर्देवीरापः सीम् पृथगरमन्त पर्यवृञ्जन्नस्मा अभीके स्थितोऽहमिममह्वे तमेव यूयमप्यह्वायत ॥४॥