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वि मे॑ पुरु॒त्रा प॑तयन्ति॒ कामाः॒ शम्यच्छा॑ दीद्ये पू॒र्व्याणि॑। समि॑द्धे अ॒ग्नावृ॒तमिद्व॑देम म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi me purutrā patayanti kāmāḥ śamy acchā dīdye pūrvyāṇi | samiddhe agnāv ṛtam id vadema mahad devānām asuratvam ekam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। मे॒। पु॒रु॒ऽत्रा। प॒त॒य॒न्ति॒। कामाः॑। शमि॑। अच्छ॑। दी॒द्ये॒। पू॒र्व्या॑णि॑। सम्ऽइ॑द्धे। अ॒ग्नौ। ऋ॒तम्। इत्। व॒दे॒म॒। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:55» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

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पदार्थान्वयभाषाः - जिनसे (मे) मेरी (पुरुत्रा) बहुत (कामाः) अभिलाषाएँ (पतयन्ति) स्वामी को स्पष्ट कहने की इच्छा करती हैं उन (पूर्व्याणि) पूर्वजनों से सिद्ध किये गये (शमि) कर्मों को मैं (अच्छ) उत्तम प्रकार (वि) विशेष करके (दीद्ये) प्रकाश करूँ (समिद्धे) प्रदीप्त (अग्नौ) अग्नि में जैसे (देवानाम्) उत्तम पदार्थों के मध्य में (महत्) बड़े (एकम्) सहायरहित (असुरत्वम्) प्राणों के आधार (ऋतम्) सत्य को (वदेम) कहे उसको (इत्) ही सब लोग कहें ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग आलस्य को त्याग के पूर्व पुरुषों करके किये हुये कर्मों का सेवन देवों के देव सबके आधार सत्यस्वरूप और दीपक से घट आदि के सदृश भीतर व्याप्त परमात्मा को साक्षात् देख के अन्य जनों के प्रति उपदेश देवैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

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अन्वय:

यैर्मे पुरुत्रा कामाः पतयन्ति तानि पूर्व्याणि शम्यहमच्छ विदीद्ये समिद्धेऽग्नाविव देवानाम्महदेकमसुरत्वमृतं वदेम तदिदेव सर्वे वदन्तु ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) विशेषे (मे) मम (पुरुत्रा) बहूनि (पतयन्ति) पतिमाचक्षन्ते (कामाः) अभिलाषाः (शमि) कर्माणि। शमीति कर्मना०। निघं० २। १। (अच्छ)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (दीद्ये) प्रकाशयेयम्। दीदयतीति ज्वलतिकर्मा। निघं० १। १६। (पूर्व्याणि) पूर्वैः साधितानि (समिद्धे) प्रदीप्ते (अग्नौ) (ऋतम्) सत्यम् (इत्) एव (वदेम) महत् (देवानाम्) दिव्यानां पदार्थानां मध्ये (असुरत्वम्) प्राणाधारम् (एकम्) असहायम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या आलस्यं विहाय पूर्वैराप्तैराचरितानि कर्माणि सेवित्वा देवानां देवं सर्वाधारं सत्यस्वरूपं दीपेन घटादिकमिवान्तर्व्याप्तं परमात्मानं साक्षाद्दृष्ट्वाऽन्यान् प्रत्युपदिशन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी आळस सोडावा व पूर्वजांनी केलेल्या कर्माचे सेवन करावे. देवांचा देव, सर्वांचा आधारस्वरूप, सत्यस्वरूप व दीपक जसा घट प्रकाशित करतो तसे अंतःकरणात तेवणाऱ्या परमेश्वराला साक्षात पाहून इतरांना उपदेश करावा. ॥ ३ ॥