नाना॑ चक्राते य॒म्या॒३॒॑ वपूं॑षि॒ तयो॑र॒न्यद्रोच॑ते कृ॒ष्णम॒न्यत्। श्यावी॑ च॒ यदरु॑षी च॒ स्वसा॑रौ म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥
nānā cakrāte yamyā vapūṁṣi tayor anyad rocate kṛṣṇam anyat | śyāvī ca yad aruṣī ca svasārau mahad devānām asuratvam ekam ||
नाना॑। च॒क्रा॒ते॒ इति॑। य॒म्या॑। वपूं॑षि। तयोः॑। अ॒न्यत्। रोच॑ते। कृ॒ष्णम्। अ॒न्यत्। श्यावी॑। च॒। यत्। अरु॑षी। च॒। स्वसा॑रौ। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
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स्वामी दयानन्द सरस्वती
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हे मनुष्या यद्देवानां महदेकमसुरत्वमस्ति तेन व्यवस्थापिते यत् या श्यावी यम्या चाऽरुषी स्वसाराविव वर्त्तमाने सत्यौ नाना वपूंषि चक्राते तयोरन्यदुषोरूपं रोचते च कृष्णमन्यद्रात्रिरूपमावृणोति तद्ब्रह्म विजानीत ॥११॥