उ॒षसः॒ पूर्वा॒ अध॒ यद्व्यू॒षुर्म॒हद्वि ज॑ज्ञे अ॒क्षरं॑ प॒दे गोः। व्र॒ता दे॒वाना॒मुप॒ नु प्र॒भूष॑न्म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥
uṣasaḥ pūrvā adha yad vyūṣur mahad vi jajñe akṣaram pade goḥ | vratā devānām upa nu prabhūṣan mahad devānām asuratvam ekam ||
उ॒षसः॑। पूर्वाः॑। अध॑। यत्। वि॒ऽऊ॒षुः। म॒हत्। वि। ज॒ज्ञे॒। अ॒क्षर॑म्। प॒दे। गोः। व्र॒ता। दे॒वाना॑म्। उप॑। नु। प्र॒ऽभूष॑न्। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब बाईस ऋचावाले पचपनवें सूक्त का आरम्भ है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
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यदुषसः पूर्वा व्यूषुस्तन्महदक्षरं महत्तत्वाख्यं गोः पदे वि जज्ञे यदेकं देवानाम्महदसुरत्वं प्रभूषन्नध देवानां व्रतोप नु जज्ञे तद्यूयं विजानीत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात दिवस, रात्र, विद्वान, अंतरिक्ष, पृथ्वी, राजधर्म व ईश्वर यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.