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क॒विर्नृ॒चक्षा॑ अ॒भि षी॑मचष्ट ऋ॒तस्य॒ योना॒ विघृ॑ते॒ मद॑न्ती। नाना॑ चक्राते॒ सद॑नं॒ यथा॒ वेः स॑मा॒नेन॒ क्रतु॑ना संविदा॒ने॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kavir nṛcakṣā abhi ṣīm acaṣṭa ṛtasya yonā vighṛte madantī | nānā cakrāte sadanaṁ yathā veḥ samānena kratunā saṁvidāne ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒विः। नृ॒ऽचक्षा॑। अ॒भि। सी॒म्। अ॒च॒ष्ट॒। ऋ॒तस्य॑। योना॑। विघृ॑ते॒ इति॒ विऽघृ॑ते। मद॑न्ती॒ इति॑। नाना॑। च॒क्रा॒ते॒ इति॑। सद॑नम्। यथा॑। वेः। स॒मा॒नेन॑। क्रतु॑ना। सं॒वि॒दा॒ने इति॑ स॒म्ऽवि॒दा॒ने॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री और पुरुष ! (यथा) जैसे (कविः) संपूर्ण विषयों के जानने (नृचक्षाः) मनुष्यों के देखनेवाले परमेश्वर (ऋतस्य) सत्य कारण के (योना) गृह में (विघृते) विशेष करके प्रकाशित में (नाना) अनेक प्रकार के (सदनम्) स्थान को (चक्राते) करते हैं (मदन्ती) आनन्द करती हुईं (वेः) पक्षी के (समानेन) तुल्य (क्रतुना) कर्म से (संविदाने) की है प्रतिज्ञा जिन्होंने उन स्त्रियों के सदृश वर्त्तमान अन्तरिक्ष और पृथिवी को (सीम्) सब ओर (अभि, अचष्ट) प्रकाशित किया, उसकी सब लोग उपासना करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस परमेश्वर ने अनेक प्रकार के प्रकाश और अप्रकाश से युक्त लोक रचे, वही सबको जानने और सबको देखनेवाला परमात्मा निरन्तर उपासना करने योग्य है ॥६
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ ईश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे स्त्रीपुरुषौ यथा कविर्नृचक्षाः परमेश्वर ऋतस्य योना विघृते नाना सदनं चक्राते मदन्ती वेः समानेन क्रतुना संविदाने स्त्रियाविव वर्त्तमाने द्यावापृथिव्यौ सीमभ्यचष्ट तं सर्व उपासीरन् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कविः) सर्वज्ञः (नृचक्षाः) नृणां द्रष्टा (अभि) (सीम्) सर्वतः (अचष्ट) प्रकाशितवान् (ऋतस्य) सत्यस्य कारणस्य (योना) योनौ गृहे (विघृते) विशेषेण प्रकाशिते (मदन्ती) आनन्दन्त्यौ (नाना) अनेकविधम् (चक्राते) कुरुतः (सदनम्) स्थानम् (यथा) (वेः) पक्षिणः (समानेन) तुल्येन (क्रतुना) कर्मणा (संविदाने) कृतप्रतिज्ञ इव ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येन परमेश्वरेणाऽनेकविधाः प्रकाशाऽप्रकाशयुक्ता लोका निर्मिताः स एव सर्वज्ञः सर्वद्रष्टा परमात्मा सततमुपासनीयः ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या परमेश्वराने अनेक प्रकारचे प्रकाश व अप्रकाशयुक्त गोल निर्माण केलेले आहेत, तोच सर्वांना जाणणारा व पाहणारा परमात्मा निरंतर उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ६ ॥