वांछित मन्त्र चुनें

शृ॒ण्वन्तु॑ नो॒ वृष॑णः॒ पर्व॑तासो ध्रु॒वक्षे॑मास॒ इळ॑या॒ मद॑न्तः। आ॒दि॒त्यैर्नो॒ अदि॑तिः शृणोतु॒ यच्छ॑न्तु नो म॒रुतः॒ शर्म॑ भ॒द्रम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śṛṇvantu no vṛṣaṇaḥ parvatāso dhruvakṣemāsa iḻayā madantaḥ | ādityair no aditiḥ śṛṇotu yacchantu no marutaḥ śarma bhadram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शृ॒ण्वन्तु॑। नः॒। वृष॑णः। पर्व॑तासः। ध्रु॒वऽक्षे॑मासः। इळ॑या। मद॑न्तः। आ॒दि॒त्यैः। नः॒। अदि॑तिः। शृ॒णो॒तु॒। यच्छ॑न्तु। नः॒। म॒रुतः॑। शर्म॑। भ॒द्रम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:20 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:20


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! आप लोग (इळया) प्रशंसित वाणी के सहित वर्त्तमान (नः) हम लोगों कीर्त्तिमानों को (शृण्वन्तु) सुनो (वृषणः) वृष्टि करनेवाले (ध्रुवक्षेमासः) निश्चित रक्षा है जिनसे वे (पर्वतासः) मेघ जैसे वैसे हम लोगों की (मदन्तः) प्रसन्न हुए वृद्धि कर और (आदित्यैः) पूर्ण विद्वानों के साथ (अदितिः) माता (नः) हम लोगों को (शृणोतु) सुने (मरुतः) मनुष्य लोग (नः) हम लोगों के लिये (भद्रम्) कल्याण करनेवाले (शर्म) श्रेष्ठ गृह के सदृश सुख को (यच्छन्तु) देवें ॥२०॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सब प्राप्तियों से प्रथम उत्तम शिक्षा तदनन्तर विद्या पुनः सत्सङ्ग से कल्याणकारक आचरण उत्तम बातों का श्रवण और उपदेश करके सबके योग्य अर्थात् भोजन आच्छादन के निर्वाह और कल्याण को सिद्ध करें ॥२०॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो भवन्त इळया सह वर्त्तमानान्नोऽस्माञ्छृण्वन्तु वृषणो ध्रुवक्षेमासः पर्वतास इवाऽस्मान्मदन्त उन्नयन्तु। आदित्यैः सहादितिर्नः शृणोतु मरुतो नो भद्रं शर्म यच्छन्तु ॥२०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शृण्वन्तु) (नः) अस्मान् कीर्त्तिमतः (वृषणः) वृष्टिकराः (पर्वतासः) मेघा इव (ध्रुवक्षेमासः) ध्रुवं निश्चितं क्षेमं रक्षणं येभ्यस्ते (इळया) प्रशंसितया वाचा (मदन्तः) हर्षन्तः (आदित्यैः) पूर्णविद्यैस्सह (नः) अस्मान् (अदितिः) माता (शृणोतु) (यच्छन्तु) ददतु (नः) अस्मभ्यम् (मरुतः) मानवाः (शर्म) उत्तमं गृहमिव सुखम् (भद्रम्) कल्याणकरम् ॥२०॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सर्वाभ्यः प्राप्तिभ्य आदौ सुशिक्षा ततो विद्या पुनः सत्सङ्गकल्याणाऽऽचरणं श्रवणमुपदेशनञ्च कृत्वा सर्वेषां योगक्षेमौ संसाधनीयौ ॥२०॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सर्व प्राप्तीमध्ये प्रथम उत्तम शिक्षण त्यानंतर विद्या पुन्हा सत्संगाने कल्याणकारक आचरण, उत्तम गोष्टींचे श्रवण व उपदेश करून भोजन, वस्त्रांचा निर्वाह करून योमक्षेम चालवावा. ॥ २० ॥