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बलं॑ धेहि त॒नूषु॑ नो॒ बल॑मिन्द्रान॒ळुत्सु॑ नः। बलं॑ तो॒काय॒ तन॑याय जी॒वसे॒ त्वं हि ब॑ल॒दा असि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

balaṁ dhehi tanūṣu no balam indrānaḻutsu naḥ | balaṁ tokāya tanayāya jīvase tvaṁ hi baladā asi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बल॑म्। धे॒हि॒। त॒नूषु॑। नः॒। बल॑म्। इ॒न्द्र॒। अ॒न॒ळुत्ऽसु॑। नः॒। बल॑म्। तो॒काय॑। तन॑याय। जी॒वसे। त्वम्। हि। ब॒ल॒ऽदाः। असि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:53» मन्त्र:18 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:18


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के देनेवाले ! (हि) जिससे आप (बलदाः) बल के देनेवाले (असि) हैं इससे (नः) हम लोगों के (तनूषु) शरीरों में (बलम्) बल को (धेहि) धारण करो और (नः) हम लोगों को (अनळुत्सु) गौ आदिकों में (बलम्) बल को धारण करो, हम लोगों के (जीवसे) जीवन और (तोकाय) छोटे बालक तथा (तनयाय) कौमार अवस्था को प्राप्त पुरुष के लिये (बलम्) पराक्रम को धारण करो ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे आचार्य्य ! आप जिससे कि शरीर और आत्मा के बल से युक्त हो, इससे हम लोगों में पूर्ण शरीर और आत्मा के बल को धारण करो ॥१८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! हि यतस्त्वं बलदा असि तस्मान्नस्तनूषु बलं धेहि। नोऽनळुत्सु बलं धेहि नो जीवसे तोकाय तनयाय बलं धेहि ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बलम्) पराक्रमम् (धेहि) (तनूषु) शरीरेषु (नः) अस्मान् (बलम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (अनळुत्सु) गवादिषु (नः) अस्माकम् (बलम्) (तोकाय) ह्रस्वाय बालकाय (तनयाय) प्राप्तकौमारयौवनाऽवस्थाय (जीवसे) जीवितुम् (त्वम्) (हि) यतः (बलदाः) (असि) ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे आचार्य ! भवान् यस्माच्छरीरात्मबलवानस्ति तस्मादस्मासु पूर्णं शरीरात्मबलं निधेहि ॥१८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे आचार्य! तुम्ही शरीर व आत्म्याच्या बलाने युक्त आहात. त्यामुळे आमच्यामध्ये पूर्ण शरीर व आत्मबल धारण करा. ॥ १८ ॥