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य इ॒मे रोद॑सी उ॒भे अ॒हमिन्द्र॒मतु॑ष्टवम्। वि॒श्वामि॑त्रस्य रक्षति॒ ब्रह्मे॒दं भार॑तं॒ जन॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya ime rodasī ubhe aham indram atuṣṭavam | viśvāmitrasya rakṣati brahmedam bhārataṁ janam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। इ॒मे इति॑। रोद॑सी॒ इति॑। उ॒भे इति॑। अ॒हम्। इन्द्र॑म्। अतु॑स्तवम्। वि॒श्वामि॑त्रस्य। र॒क्ष॒ति॒। ब्रह्म॑। इ॒दम्। भार॑तम्। जन॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:53» मन्त्र:12 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (इमे) ये (उभे) दोनों (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी (ब्रह्म) धन वा ब्रह्माण्ड (इदम्) इस वर्त्तमान (भारतम्) वाणी के जानने वा धारण करनेवाले उस (जनम्) प्रसिद्ध मनुष्य आदि प्राणि स्वरूप की (रक्षति) रक्षा करता है जिस (इन्द्रम्) परमात्मा की हम (अतुष्टवम्) प्रशंसा करें उस (विश्वामित्रस्य) सबके मित्र की ही उपासना आप लोग करें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण संसार रचकर रक्षित है, उसकी ही स्तुति प्रार्थना और उपासना निरन्तर करो ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या य इमे उभे रोदसी ब्रह्मेदं भारतं जनं रक्षति यमिन्द्रमहमतुष्टवं तस्य विश्वामित्रस्यैवोपासनां यूयं कुरुत ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (इमे) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (उभे) (अहम्) (इन्द्रम्) परमात्मानम् (अतुष्टवम्) प्रशंसेयम् (विश्वामित्रस्य) सर्वस्य सुहृदः (रक्षति) (ब्रह्म) धनं ब्रह्माण्डं वा (इदम्) वर्त्तमानम् (भारतम्) भारत्या वाचोऽपं वेत्ता धर्त्ता वा तम् (जनम्) प्रसिद्धं मनुष्यादिकं प्राणिमयम् ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या येनेश्वरेण सर्वं जगत्सृष्ट्वा रक्ष्यते तस्यैव स्तुतिप्रार्थनोपासनाः सततं कुरुत ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या परमेश्वराने संपूर्ण संसार निर्माण करून त्याचे रक्षण केलेले आहे, त्याची सदैव स्तुती, प्रार्थना व उपासना करावी. ॥ १२ ॥