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स वा॑वशा॒न इ॒ह पा॑हि॒ सोमं॑ म॒रुद्भि॑रिन्द्र॒ सखि॑भिः सु॒तं नः॑। जा॒तं यत्त्वा॒ परि॑ दे॒वा अभू॑षन्म॒हे भरा॑य पुरुहूत॒ विश्वे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa vāvaśāna iha pāhi somam marudbhir indra sakhibhiḥ sutaṁ naḥ | jātaṁ yat tvā pari devā abhūṣan mahe bharāya puruhūta viśve ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। वा॒व॒शा॒नः। इ॒ह। पा॒हि॒। सोम॑म्। म॒रुत्ऽभिः॑। इ॒न्द्र॒। सखि॑ऽभिः। सु॒तम्। नः॒। जा॒तम्। यत्। त्वा॒। परि॑। दे॒वाः। अभू॑षन्। म॒हे। भरा॑य। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। विश्वे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:51» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सम्पूर्ण ऐश्वर्यों से युक्त ! (इह) इस राज्य के व्यवहार में वह (वावशानः) कामना करते हुए आप (मरुद्भिः) पवनों से सूर्य के सदृश (सखिभिः) मित्रों के साथ (नः) हम लोगों के (जातम्) प्रकट और (सुतम्) उत्पन्न (सोमम्) ऐश्वर्य की (पाहि) रक्षा कीजिये और हे (पुरुहूत) बहुतों से प्रशंसित (विश्वे) सम्पूर्ण (देवाः) विद्वान् लोग (यत्) जिससे (महे) बड़े (भराय) पोषण करने योग्य संग्राम के लिये (त्वा) आपको (परि) सब प्रकार (अभूषन्) शोभित करें, तिससे आप हम लोगों को सब प्रकार शोभित करें ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य वायुरूप सहाय से सबकी रक्षा करता है, वैसे ही यथार्थवक्ता मित्रों के साथ राजा संपूर्ण राज्य की रक्षा करे और जो मन्त्री और नौकर राज्य के हितकारी होवें, उनका सब काल में सत्कार करें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र इह स वावशानस्त्वं मरुद्भिः सूर्यइव सखिभिः सह नो जातं सुतं सोमं पाहि। हे पुरुहूत विश्वेदेवा यद्येन महे भराय त्वा पर्यभूषंस्तेन त्वमस्मान्त्सर्वतोऽलङ्कुरु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (वावशानः) कामयमानः (इह) अस्मिन् राज्यव्यवहारे (पाहि) (सोमम्) ऐश्वर्यम् (मरुद्भिः) वायुभिः सूर्य इव (इन्द्र) सकलैश्वर्यसम्पन्न (सखिभिः) सुहृद्भिः (सुतम्) उत्पन्नम् (नः) अस्माकम् (जातम्) प्रकटम् (यत्) येन (त्वा) त्वाम् (परि) सर्वतः (देवाः) विद्वांसः (अभूषन्) अलङ्कुर्युः (महे) महते (भराय) भरणीयाय सङ्ग्रामाय (पुरुहूत) बहुभिः प्रशंसित (विश्वे) सर्वे ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यो वायुसहायेन सर्वं रक्षति तथैवाप्तैर्मित्रैः सह राजा सर्वं राष्ट्रं रक्षेद्येऽमात्यभृत्या राज्यहितकारिणः स्युस्तान् सर्वदा सत्कुर्यात् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य वायूरूपाच्या साहाय्याने सर्वांचे रक्षण करतो, तसेच यथार्थवक्ता मित्रांबरोबर राजाने संपूर्ण राज्याचे रक्षण करावे व जे मंत्री व नोकर, राज्याचे हितकरी असतात त्यांचा सदैव सत्कार करावा. ॥ ८ ॥