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यस्ते॒ अनु॑ स्व॒धामस॑त्सु॒ते नि य॑च्छ त॒न्व॑म्। स त्वा॑ ममत्तु सो॒म्यम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas te anu svadhām asat sute ni yaccha tanvam | sa tvā mamattu somyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। ते॒। अनु॑। स्व॒धाम्। अस॑त्। सु॒ते। नि। य॒च्छ॒। त॒न्व॑म्। सः। त्वा॒। म॒म॒त्तु॒। सो॒म्यम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:51» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:6 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (यः) जो (ते) आपके (सुते) उत्पन्न सोमलता के रस में (स्वधाम्) अन्न (अनु, असत्) पीछे होवे (सः) वह (त्वा) आपको (ममत्तु) आनन्द देवे और आप (तन्वम्) शरीर को (नियच्छ) ग्रहण कीजिये (सोम्यम्) सोमलता में उत्पन्न का पान आदि आचरण कीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आपके अनुकूल और धर्मात्मा होकर प्रजाओं को आनन्दित करे, वह लक्ष्मीवान् से ऐश्वर्य को प्राप्त होवे और आप इन्द्रियजित् होकर प्रजाओं को सिद्ध कीजिये ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे राजन् ! यस्ते सुते स्वधामन्वसत्स त्वा ममत्तु त्वं तन्वं नियच्छ सोम्यमाचर ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) विद्वान् (ते) तव (अनु) (स्वधाम्) अन्नम् (असत्) भवेत् (सुते) (नि) (यच्छ) निगृह्णीहि (तन्वम्) शरीरम् (सः) (त्वा) त्वाम् (ममत्तु) आनन्दतु (सोम्यम्) सोमे भवम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यो भवदनुकूलो भूत्वा धर्मात्मा सन् प्रजा आनन्दयेत् स श्रीमत ऐश्वर्यं प्राप्नुयात्त्वं जितेन्द्रियो भूत्वा प्रजाः साधि ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! जो तुझ्या अनुकूल धर्मात्मा बनून प्रजेला आनंदित करतो त्याला श्रीमंताकडून ऐश्वर्य प्राप्त व्हावे व तू इंद्रियजित बनून प्रजेला संपन्न करावेस. ॥ ११ ॥