वांछित मन्त्र चुनें

ऋ॒भुश्च॑क्र॒ ईड्यं॒ चारु॒ नाम॒ विश्वा॑नि दे॒वो व॒युना॑नि वि॒द्वान्। स॒सस्य॒ चर्म॑ घृ॒तव॑त्प॒दं वेस्तदिद॒ग्नी र॑क्ष॒त्यप्र॑युच्छन्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛbhuś cakra īḍyaṁ cāru nāma viśvāni devo vayunāni vidvān | sasasya carma ghṛtavat padaṁ ves tad id agnī rakṣaty aprayucchan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒भुः। च॒क्रे॒। ईड्य॑म्। चारु॑। नाम॑। विश्वा॑नि। दे॒वः। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। स॒सस्य॑। चर्म॑। घृ॒तऽव॑त् प॒दम्। वेः। तत्। इत्। अ॒ग्निः। र॒क्ष॒ति॒। अप्र॑ऽयुच्छन्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:5» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (ऋभुः) बड़ा (देवः) देनेवाला (अप्रयुच्छन्) प्रमाद न करता हुआ (विद्वान्) विद्वान् (ईड्यम्) स्तुति के योग्य कर्म (चारु) सुन्दर (नाम) वाणी वा जल को और (विश्वानि) समस्त (वयुनानि) उत्तम ज्ञानों को (चक्रे) करता है वह (तत्, इत्) उन्हीं को प्राप्त हुआ (अग्निः) अग्नि के समान (वेः) पाये (ससस्य) और सोते हुए मनुष्य के (पदम्) पद और (चर्म) त्वचा की (घृतवत्) घी के तुल्य (रक्षति) रक्षा करता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्राणाग्नि शरीर की रक्षा करता है, सोते हुए को जगाता है, वैसे अध्यापक और उपदेशक उत्तम शिक्षा को पाये हुए वाणी के समस्त विज्ञानों की प्राप्ति करा कर मनुष्यों को जगाते हैं ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

य ऋभुर्देवोऽप्रयुच्छन् विद्वानीड्यं चारु नाम विश्वानि वयुनानि चक्रे तदित्प्राप्तोऽग्निरिव वेः ससस्य पदं चर्म घृतवत् रक्षति ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋभुः) महान् (चक्रे) करोति (ईड्यम्) स्तोतुमर्हम् (चारु) सुन्दरम् (नाम) वाचं जलं वा। नामेति वाङ्नाम। निघं०१। ११। उदकनामसु च० निघं०१। १२। (विश्वानि) सर्वाणि (देवः) दाता (वयुनानि) प्रज्ञानानि (विद्वान्) (ससस्य) शयानस्य (चर्म) (घृतवत्) घृतेन तुल्यम् (पदम्) (वेः) प्राप्तस्य (तत्) (इत्) एव (अग्निः) पावकः (रक्षति) (अप्रयुच्छन्) अप्रमाद्यन् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा प्राणाऽग्निः शरीरं रक्षति सुप्तं जागारयति तथा अध्यापकोपदेशकाः सुशिक्षिता वाचोऽखिलानि विज्ञानानि प्रापय्य मनुष्यान् जागृतान् कुर्वन्ति ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा प्राणाग्नी शरीराचे रक्षण करतो, निद्रिस्तांना जागृत करतो तसे अध्यापक व उपदेशक सुसंस्कृत वाणीने संपूर्ण विज्ञान प्राप्त करून माणसांना जागृत करतात. ॥ ६ ॥