वांछित मन्त्र चुनें

पाति॑ प्रि॒यं रि॒पो अग्रं॑ प॒दं वेः पाति॑ य॒ह्वश्चर॑णं॒ सूर्य॑स्य। पाति॒ नाभा॑ स॒प्तशी॑र्षाणम॒ग्निः पाति॑ दे॒वाना॑मुप॒माद॑मृ॒ष्वः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pāti priyaṁ ripo agram padaṁ veḥ pāti yahvaś caraṇaṁ sūryasya | pāti nābhā saptaśīrṣāṇam agniḥ pāti devānām upamādam ṛṣvaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पाति॑। प्रि॒यम्। रि॒पः। अग्र॑म्। प॒दम्। वेः। पाति॑। य॒ह्वः। चर॑णम्। सूर्य॑स्य। पाति॑। नाभा॑। स॒प्तऽशी॑र्षाणम्। अ॒ग्निः। पाति॑। दे॒वाना॑म्। उ॒प॒ऽमाद॑म्। ऋ॒ष्वः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:5» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:24» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! जैसे (अग्निः) अग्नि (वेः) चलती हुई (रिपः) पृथिवी के (अग्रम्) ऊपरले (प्रियम्) प्रिय (पदम्) प्राप्त होने योग्य स्थान को (पाति) प्राप्त होता और (यह्वः) बड़ा बहुत होता हुआ (सूर्य्यस्य) सूर्य्य के (चरणम्) गमन को (पाति) प्राप्त होता वा (नाभा) बीच में वर्त्तमान अन्तरिक्ष में (सप्तशीर्षाणम्) सात प्रकार की शिर रूप किरणें जिसमें विद्यमान उस सूर्य्यमण्डल को (पाति) प्राप्त होता वा (ऋष्वः) प्राप्ति करानेवाला होता हुआ (देवानाम्) दिव्य विद्वानों के (उपमादम्) उस व्यवहार को जो उपमा दिलाता है (पाति) प्राप्त होता है, वैसे तुम होओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् ! जैसे वह्नि चालवाले पृथिवी आदि लोकों की रक्षा और प्रकाश के निमित्त से उनकी रक्षा करनेवाला वर्त्तमान होता है, वैसे आप सबकी रक्षा करनेवाले होओ ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् ! यथाऽग्निर्वे रिपोऽग्रं प्रियं पदं पाति यह्वः सन् सूर्य्यस्य चरणं पाति नाभा सप्तशीर्षाणं पाति ऋष्वस्सन् देवानामुपमादं पाति तथा त्वं भव ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पाति) (प्रियम्) (रिपः) पृथिव्याः (अग्रम्) उपरिभागम् (पदम्) प्राप्तव्यं स्थानम् (वेः) गन्त्र्याः (पाति) (यह्वः) महान् (चरणम्) गमनम् (सूर्य्यस्य) (पाति) (नाभा) मध्ये वर्त्तमानेऽन्तरिक्षे (सप्तशीर्षाणम्) सप्तविधानि शिरांसि किरणा यस्मिँस्तम् (अग्निः) पावकः (पाति) (देवानाम्) दिव्यानां विदुषाम् (उपमादम्) य उपमां ददाति तम् (ऋष्वः) प्रापकः ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! यथा वह्निर्गतिमतां पृथिव्यादीनां रक्षाप्रकाशनिमित्तेन रक्षको वर्त्तते तथा त्वं सर्वेषां रक्षको भवेः ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना! जसा अग्नी गतिमान पृथ्वी व प्रकाशाचे निमित्त असून त्यांचा रक्षक असतो तसे तूही सर्वांचे रक्षण कर. ॥ ५ ॥