वांछित मन्त्र चुनें

उ॒ग्रस्तु॑रा॒षाळ॒भिभू॑त्योजा यथाव॒शं त॒न्वं॑ चक्र ए॒षः। त्वष्टा॑र॒मिन्द्रो॑ ज॒नुषा॑भि॒भूया॒मुष्या॒ सोम॑मपिबच्च॒मूषु॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ugras turāṣāḻ abhibhūtyojā yathāvaśaṁ tanvaṁ cakra eṣaḥ | tvaṣṭāram indro januṣābhibhūyāmuṣyā somam apibac camūṣu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒ग्रः। तु॒रा॒षाट्। अ॒भिभू॑तिऽओजाः। य॒था॒ऽव॒शम्। त॒न्व॑म्। च॒क्रे॒। ए॒षः। त्वष्टा॑रम्। इन्द्रः॑। ज॒नुषा॑। अ॒भि॒ऽभूय॑। आ॒ऽमुष्य॑। सोम॑म्। अ॒पि॒ब॒त्। च॒मूषु॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:48» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजा के पालन का विषय अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (एषः) यह (चमूषु) भक्षण करनेवाली सेनाओं में (सोमम्) ओषधियों के रस की (आमुष्य) चोरी करके (अपिबत्) पीवे उस (त्वष्टारम्) तेजस्वी और शत्रुओं का (अभिभूय) तिरस्कार करके (जनुषा) जन्म से (उग्रः) तेजस्वी (तुराषाट्) शीघ्रकारियों को सहनेवाला (अभिभूत्योजाः) शत्रुओं के तिरस्कार करनेवाले पराक्रम से युक्त (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्यवाला पुरुष (यथावशम्) यथासामर्थ्य (तन्वम्) शरीर को (चक्रे) करता है, वह राज्य करने के योग्य होवे ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् धार्मिक राजा जन हैं, वे चोर आदि दुष्ट जनों का तिरस्कार और मादक द्रव्य अर्थात् उन्मत्तता करनेवाले द्रव्यों के सेवनकर्त्ताओं का दण्ड करके और अपने आप अव्यसनी होकर प्रजाओं के पालन करने को समर्थ होवें, वे ही राज्य की वृद्धि करने के योग्य होवें ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजापालनविषयमाह।

अन्वय:

य एषश्चमूषु सोममामुष्याऽपिबत्तं त्वष्टारमभिभूय जनुषोग्रस्तुराषाडभिभूत्योजा इन्द्रो यथावशं तन्वं चक्रे स राज्यं कर्त्तुमर्हेत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उग्रः) तेजस्वी (तुराषाट्) यस्तुरा त्वरिताञ्छीघ्रकारिणः सहते सः (अभिभूत्योजाः) शत्रूणामभिभवकरः पराक्रमो यस्य सः (यथावशम्) वशमनतिक्रम्य वर्त्तते तत् (तन्वम्) शरीरम् (चक्रे) करोति (एष) (त्वष्टारम्) तेजस्विनम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (जनुषा) जन्मना (अभिभूय) शत्रून् तिरस्कृत्य (आमुष्य) चोरयित्वा। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सोमम्) ओषधिरसम् (अपिबत्) पिबेत् (चमूषु) भक्षयित्रीषु सेनासु ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो धार्मिका राजजनास्ते स्तेनादीन् दुष्टाँस्तिरस्कृत्य मादकद्रव्यसेविनो दण्डयित्वा स्वयमव्यसनिनो भूत्वा प्रजाः पालयितुं क्षमाः स्युस्त एव राज्यमुन्नेतुमर्हेयुः ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जे विद्वान धार्मिक राजे असतात, त्यांनी चोर इत्यादी दुष्ट लोकांचा तिरस्कार करावा व मादक द्रव्याचे सेवन करणाऱ्यास दंड करून स्वतः निर्व्यसनी होऊन प्रजेचे पालन करण्यास समर्थ व्हावे. तेच राज्याची वृद्धी करण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥