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यज्जाय॑था॒स्तदह॑रस्य॒ कामें॒ऽशोः पी॒यूष॑मपिबो गिरि॒ष्ठाम्। तं ते॑ मा॒ता परि॒ योषा॒ जनि॑त्री म॒हः पि॒तुर्दम॒ आसि॑ञ्च॒दग्रे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaj jāyathās tad ahar asya kāme ṁśoḥ pīyūṣam apibo giriṣṭhām | taṁ te mātā pari yoṣā janitrī mahaḥ pitur dama āsiñcad agre ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। जाय॑थाः। तत्। अहः॑। अ॒स्य॒। कामे॑। अं॒शोः। पी॒यूष॑म्। अ॒पि॒बः॒। गि॒रि॒ऽस्थाम्। तम्। ते॒। मा॒ता। परि॑। योषा॑। जनि॑त्री। म॒हः। पि॒तुः। दमे॑। आ। अ॒सि॒ञ्च॒त्। अग्रे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:48» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सन्तान की उत्पत्ति के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! आप (यत्) जिस (अहः) दिन (जायथाः) उत्पन्न हुए (तत्) उस दिन की (कामे) कामना में (अस्य) इस (अंशोः) प्राप्त हुए भाग के (गिरिष्ठाम्) मेघ में विद्यमान (पीयूषम्) अमृतरूप रस को (ते) आपके पिता (अपिबः) पान करें (तम्) उसको आपके (पितुः) पालक और उत्पादक पिता की (योषा) स्त्री आपकी (जनित्री) उत्पन्न करनेवाली (माता) माता (अग्रे) पहिले (दमे) घर में (महः) बड़े को (परि, आ, असिञ्चत्) चारों ओर से सींचता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जब स्त्री और पुरुष गर्भ को धारण करें तब दुष्ट अन्न पान आदि का सेवन त्याग श्रेष्ठ अन्न पान गर्भधारण और सन्तान उत्पन्न करके फिर उसका भी इसी प्रकार पालन और वृद्धि करे, जो कि राजा होने को योग्य हो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सन्तानोत्पत्तिविषयमाह।

अन्वय:

हे राजँस्त्वं यदहर्जायथास्तदहः कामेऽस्यांऽशोर्गिरिष्ठां पीयूषं ते तव पिताऽपिबस्तं तव पितुर्योषा तव जनित्री माताऽग्रे दमे महः पर्य्यासिञ्चत् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) (जायथाः) (तत्) (अहः) दिने (अस्य) (कामे) (अंशोः) प्राप्तस्य (पीयूषम्) अमृतात्मकं रसम् (अपिबः) पिब (गिरिष्ठाम्) यो गिरौ मेघे तिष्ठति (तम्) (ते) तव (माता) (परि) सर्वतः (योषा) (जनित्री) (महः) महत् (पितुः) पालकस्य जनकस्य (दमे) गृहे। दम इति गृहना०। निघं०३। ४। (आ) (असिञ्चत्) समन्तात् सिञ्चति (अग्रे) प्रथमतः ॥२॥
भावार्थभाषाः - यदा स्त्रीपुरुषौ गर्भमादधेयातां तदा दुष्टान्नपानादिसेवनं विहाय श्रेष्ठान्नपानं कृत्वा गर्भमाधाय सन्तानमुत्पाद्य पुनस्तस्याप्येवमेव पालनं वर्धनं कुर्य्याद्यो राजा भवितुमर्हेत् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जेव्हा स्त्री-पुरुष गर्भ धारण करतात तेव्हा निकृष्ट अन्नपान इत्यादींचा त्याग करून व उत्कृष्ट अन्नपान करून गर्भ धारण करावा व संतान उत्पन्न करून त्याचेही त्याचप्रकारे पालन करून वृद्धी करावी. ते संतानही राजा बनण्यायोग्य असावे. ॥ २ ॥