वांछित मन्त्र चुनें

वृ॒त्र॒खा॒दो व॑लंरु॒जः पु॒रां द॒र्मो अ॒पाम॒जः। स्थाता॒ रथ॑स्य॒ हर्यो॑रभिस्व॒र इन्द्रो॑ दृ॒ळ्हा चि॑दारु॒जः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛtrakhādo valaṁrujaḥ purāṁ darmo apām ajaḥ | sthātā rathasya haryor abhisvara indro dṛḻhā cid ārujaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वृ॒त्र॒ऽखा॒दः। व॒ल॒म्ऽरु॒जः। पु॒राम्। द॒र्मः। अ॒पाम्। अ॒जः। स्थाता॑। रथ॑स्य। हर्योः॑। अ॒भि॒ऽस्व॒रे। इन्द्रः॑। दृ॒ळ्हा। चि॒त्। आ॒ऽरु॒जः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:45» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (वृत्रखादः) मेघों को भक्षण करनेवाला किरण वा वायु (वलंरुजः) मेघ को नाश करने और (अपाम्) जलों को (अजः) प्रेरणा करने तथा (आरुजः) चारों ओर से तोड़नेवाला (इन्द्रः) सूर्य्य (दृढा) दृढ भङ्ग करता है वैसे हम लोग (चित्) भी (पुराम्) शत्रुओं के नगरों के मध्य में वर्त्तमान वीरों को (दर्मः) नाश करें और जैसे (हर्योः) दो घोड़ों के (अभिस्वरे) चारों ओर शब्द करनेवाले में वर्त्तमान (रथस्य) रथ के मध्य में (स्थाता) वर्त्तमान होनेवाला पुरुष वीर पुरुषों को जीतता है, वैसे ही हम लोग भी जीतैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बिजुली सूर्य और पवन मेघों के अवयवों को काटते हैं, वैसे ही धार्मिक राजा आदि लोग शत्रुओं को काटें ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा वृत्रखादो वलंरुजोऽपामज आरुज इन्द्रो दृढा दृणाति तथैव वयं चिच्छत्रूणां पुरां मध्ये स्थितान् वीरान्दर्मः। यथा हर्योरभिस्वरे स्थितस्य रथस्य मध्ये स्थाता वीरान् जयति तथैव वयं जयेम ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रखादः) यो वृत्रं मेघं खादति किरणो वायुर्वा (वलंरुजः) यो वलं मेघं रुजति (पुराम्) शत्रूणां नगराणाम् (दर्मः) दृणुयास्म (अपाम्) जलानाम् (अजः) प्रेरकः (स्थाता) (रथस्य) मध्ये (हर्य्योः) अश्वयोः (अभिस्वरे) योऽभितः स्वरति शब्दयति तस्मिन् (इन्द्रः) सूर्यः (दृढा) दृढानि (चित्) अपि (आरुजः) यः समन्ताद्रुजति भनक्ति ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्युत्सूर्यवायवो मेघाऽवयवाञ्छिन्दन्ति तथैव धार्मिका राजादयश्शत्रून् विच्छिन्द्युः ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्युत व पवन मेघांचा नाश करतात तसे धार्मिक राजाने शत्रूचा नाश करावा. ॥ २ ॥