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त्वां सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ प्र॒त्नमि॑न्द्र हवामहे। कु॒शि॒कासो॑ अव॒स्यवः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvāṁ sutasya pītaye pratnam indra havāmahe | kuśikāso avasyavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। सु॒तस्य॑। पी॒तये॑। प्र॒त्नम्। इ॒न्द्र॒। ह॒वा॒म॒हे॒। कु॒शि॒कासः॑। अ॒व॒स्यवः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:42» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:6» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सुख के दाता ! (कुशिकासः) विद्या और विनय आदिकों से श्रेष्ठ हुए (अवस्यवः) आप लोगों के आत्माओं की रक्षा की इच्छा करनेवाले हम लोग (सुतस्य) उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त रस के (पीतये) पान करने के लिये जिस (प्रत्नम्) प्राचीन काल से सिद्ध (त्वाम्) आपको (हवामहे) देवें, वह आप हम लोगों को बुलाइये ॥९॥
भावार्थभाषाः - नवीन विद्वानों से प्राचीन विद्वान् श्रेष्ठ है, ऐसा निश्चय करना चाहिये ॥९॥ इस सूक्त में इन्द्र विद्वान् और सोम के गुण वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह बैयालीसवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! कुशिकासोऽवस्यवो वयं सोमस्य पीतये यं प्रत्नं त्वां हवामहे स त्वमस्मानाह्वय॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (सुतस्य) सुसंस्कृतस्य रसस्य (पीतये) (प्रत्नम्) प्राक्तनम् (इन्द्र) सुखप्रद (हवामहे) दद्याम (कुशिकासः) विद्याविनयादिभिराप्ता निष्पन्नाः (अवस्यवः) य आत्मनो रक्षणादिकमिच्छवः ॥९॥
भावार्थभाषाः - नूतनेभ्यो विद्वद्भ्यः प्राक्तना विद्वांसः श्रेष्ठाः सन्तीति निश्चेतव्यमिति ॥९॥ अत्रेन्द्रविद्वत्सोमगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्विचत्वारिंशत्तमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - नवीन विद्वानांपेक्षा प्राचीन विद्वान श्रेष्ठ आहेत असा निश्चय केला पाहिजे. ॥ ९ ॥