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इ॒ममि॑न्द्र॒ गवा॑शिरं॒ यवा॑शिरं च नः पिब। आ॒गत्या॒ वृष॑भिः सु॒तम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imam indra gavāśiraṁ yavāśiraṁ ca naḥ piba | āgatyā vṛṣabhiḥ sutam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒मम्। इ॒न्द्र॒। गोऽआ॑शिरम्। यव॑ऽआशिरम्। च॒। नः॒। पि॒ब॒। आ॒ऽगत्य॑। वृष॑ऽभिः। सु॒तम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:42» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य के देनेवाले ! आप (आगत्य) आय के (नः) हम लोगों के (वृषभिः) वृष्टिकर्त्ता मेघों से (सुतम्) उत्पन्न किये गये (गवाशिरम्) किरणें जिसको पीती हैं उस और (यवाशिरम्) यव अन्न का भोजन किया जाय जिसमें उस (च) और (इमम्) इस पदार्थ को (पिब) पान करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसको सूर्य की किरणें और पवनें पीती हैं, उसी रस का आप लोग पान करके बलिष्ठ होइये ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वमागत्य नो वृषभिः सुतं गवाशिरं यवाशिरं चेमं सोमं पिब ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इमम्) (इन्द्र) ऐश्वर्य्यप्रद (गवाशिरम्) गावः किरणा अश्रन्ति यं तम् (यवाशिरम्) यवा अस्यन्ते यस्मिँस्तम् (च) (नः) अस्माकम् (पिब) (आगत्य)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वृषभिः) वर्षकैर्मेघैः (सुतम्) उत्पादितम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! ये किरणा वायवश्च पिबन्ति तमेव रसं यूयं पीत्वा बलिष्ठा भवत ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! सूर्याची किरणे व वायू ज्या रसाचे पान करतात त्याच रसाचे पान करून तुम्हीही बलवान व्हा. ॥ ७ ॥