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इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॒ स्तोमै॑रि॒ह ह॑वामहे। उ॒क्थेभिः॑ कु॒विदा॒गम॑त्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indraṁ somasya pītaye stomair iha havāmahe | ukthebhiḥ kuvid āgamat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑म्। सोम॑स्य। पी॒तये॑। स्तोमैः॑। इ॒ह। ह॒वा॒म॒हे॒। उ॒क्थेभिः॑। कु॒वित्। आ॒ऽगम॑त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:42» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वज्जन ! हम लोग (स्तोमैः) प्रशंसा के वचन जो (उक्थेभिः) कहने के योग्य उनसे (सोमस्य) उत्तम प्रकार निकाले हुए बड़ी ओषधि के रस के (पीतये) पान करने के लिये जिस (इन्द्रम्) अत्यन्त विद्या और ऐश्वर्य्यवाले को (इह) इस संसार में (हवामहे) पुकारैं वह हम लोगों के समीप (कुवित्) बहुत बार (आगमत्) आवे ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो अविद्वान् लोग प्रीति से विद्वान् लोगों को बुलावें, तो वे उनके समीप बहुत वार जावें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् ! वयं स्तोमैरुक्थेभिः सोमस्य पीतये यमिन्द्रमिह हवामहे सोऽस्माकं समीपं कुविदागमत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रम्) परमविद्यैश्वर्य्यम् (सोमस्य) सुसाधितमहौषधिरसस्य (पीतये) पानाय (स्तोमैः) प्रशंसावचनैः (इह) अस्मिन् संसारे (हवामहे) आह्वयामहे (उक्थेभिः) वक्तुमर्हैः (कुवित्) बहुवारम्। कुविदिति बहुना०। निघं०३। १। (आगमत्) आगच्छतु ॥४॥
भावार्थभाषाः - यद्यविद्वांसः प्रीत्या विदुष आह्वयेयुस्तदा ते तत्सन्निधिं बहुवारं गच्छन्तु ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अविद्वान लोकांनी विद्वान लोकांना प्रेमाने बोलविल्यास त्यांनी त्यांच्याजवळ अनेक वेळा जावे. ॥ ४ ॥