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आ भन्द॑माने उ॒षसा॒ उपा॑के उ॒त स्म॑येते त॒न्वा॒३॒॑ विरू॑पे। यथा॑ नो मि॒त्रो वरु॑णो॒ जुजो॑ष॒दिन्द्रो॑ म॒रुत्वाँ॑ उ॒त वा॒ महो॑भिः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā bhandamāne uṣasā upāke uta smayete tanvā virūpe | yathā no mitro varuṇo jujoṣad indro marutvām̐ uta vā mahobhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। भन्द॑माने॒ इति॑। उ॒षसौ॑। उपा॑के॒ इति॑। उ॒त। स्म॒ये॒ते॒ इति॑। त॒न्वा॑। विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे। यथा॑। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। जुजो॑षत्। इन्द्रः॑। म॒रुत्वा॑न्। उ॒त। वा॒। महः॑ऽभिः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:4» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (भन्दमाने) सुख करनेवाले (उपाके) समीप वर्त्तमान (उत) और (तन्वा) शरीर से (विरूपे) प्रकाश और अन्धकार से विरुद्ध स्वरूप (उषसौ) रात्रि और दिन स्त्री पुरुष (आ, स्मयेते) अच्छे प्रकार मुसकियाते जैसे वैसे वर्त्तमान (नः) हम लोगों को सेवन करते हैं वैसे (महोभिः) बड़े गुण-कर्म-स्वभावों के साथ (मित्रः) वायु (वरुणः) जल (उत) और (मरुत्वान्) प्रशंसित रूपवाला (इन्द्रः) बिजुली आदि अग्नि (वा) अथवा हम लोगों को (जुजोषत्) निरन्तर सेवते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। यदि ईश्वर रात्रि और दिन न बनावे, तो किसी का व्यवहार यथावत् सिद्ध न हो। जो भगवान् जल, सूर्य्य और वायु को न रचे, तो किसी का जीवन न हो ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यथा भन्दमाने उपाके उत तन्वा विरूपे उषसौ स्त्रीपुरुषावास्मयेतेइव वर्त्तमाने नोऽस्मान् सेवेते तथा महोभिः सह मित्रो वरुण उतापि मरुत्वानिन्द्रो वाऽस्मान् जुजोषत्॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (भन्दमाने) सुखकारके (उषसौ) रात्र्यहनी (उपाके) समीपं वर्त्तमाने। उपाके इति अन्तिकनाम०। निघं०२। १६। (उत) अपि (स्मयेते) ईषद्धसतः (तन्वा) शरीरेण (विरूपे) प्रकाशाऽन्धकाराभ्यां विरुद्धस्वरूपे (तथा) (नः) अस्मान् (मित्रः) वायुः (वरुणः) जलम् (जुजोषत्) भृशं सेवते (इन्द्रः) विद्युदादिरूपो वह्निः (मरुत्वान्) प्रशस्तरूपवान् (उत) अपि (वा) (महोभिः) महद्भिर्गुणकर्मस्वभावैः ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यदीश्वरो रात्रिंदिवौ न निर्मिमीत तर्हि कस्यापि व्यवहारो यथावन्न सिध्येत यदि भगवान् जलसूर्य्यवायून्न रचयेत्तर्हि कस्यापि जीवनं न स्यात् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जर ईश्वराने रात्र व दिवस निर्माण केले नसते तर कुणाचाही व्यवहार सिद्ध झाला नसता. जर परमेश्वराने जल, सूर्य, वायू निर्माण केले नसते तर कुणाचेही जीवन राहिले नसते. ॥ ६ ॥