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य॒मा चि॒दत्र॑ यम॒सूर॑सूत जि॒ह्वाया॒ अग्रं॒ पत॒दा ह्यस्था॑त्। वपूं॑षि जा॒ता मि॑थु॒ना स॑चेते तमो॒हना॒ तपु॑षो बु॒ध्न एता॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yamā cid atra yamasūr asūta jihvāyā agram patad ā hy asthāt | vapūṁṣi jātā mithunā sacete tamohanā tapuṣo budhna etā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒मा। चि॒त्। अत्र॑। यम॒ऽसूः। अ॒सू॒त॒। जि॒ह्वाया॑। अग्र॑म्। पत॑त्। आ। हि। अस्था॑त्। वपूं॑षि। जा॒ता। मि॒थु॒ना। स॒चे॒ते॒ इति॑। त॒मः॒ऽहना॑। तपु॑षः। बु॒ध्ने। आऽइ॑ता॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:39» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (यमसूः) सूर्य्य को उत्पन्न करनेवाली बिजुली (चित्) अथवा (अत्र) इस संसार में (यमा) सहचारी (मिथुना) परस्पर मिले हुए (तमोहना) अन्धकार का नाश करनेवाले (तपुषः) जिस में सूर्य्य तपता है उस दिन के बीच वा (बुध्ने) बंधते अर्थात् इकट्ठे होते जल जिसमें उस अन्तरिक्ष में (एता) वर्त्तमान इन सूर्य्य और चन्द्रमा को (असूत) उत्पन्न करती है (जिह्वायाः) तथा जिह्वा के (अग्रम्) अग्रभाग को (हि) जिस कारण (पतत्) जाती वा प्राप्त होती है और (जाता) उत्पन्न हुए (वपूंषि) रूपों को प्राप्त हो (आ, अस्थात्) स्थिर होती है जो अन्धकार के नाश करनेवाले परस्पर मिले हुए सूर्य्य और चन्द्रमा सूर्य्यमण्डल जिसमें तपता है उस दिन के बीच और जल जिसमें इकट्ठे हों उस अन्तरिक्ष में (सचेते) सम्बन्ध करते हैं, उनको (विद्धि) जानिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप जैसे बिजुली सूर्य का और सूर्य चन्द्रादिक का प्रकाश और अन्धकार का नाश करता है, वैसे ही परस्पर अनुकूल होकर उत्तम व्यवहार में तत्पर होओ ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यो यमसूश्चिदत्र यमा मिथुना तमोहना तपुषो बुध्न एता सूर्य्यचन्द्रमसावसूत जिह्वाया अग्रं हि पतज्जाता वपूंष्यास्थाद्यौ तमोहना मिथुनैता सूर्य्याचन्द्रमसौ तपुषो बुध्ने सचेते ताँस्तौ विद्धि विजानीत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यमा) यमावुपरतौ (चित्) अपि (अत्र) (यमसूः) या यमं सूर्य्यं सूते सा विद्युत् (असूत) सूते जनयति (जिह्वायाः) (अग्रम्) (पतत्) पतति गच्छति प्राप्नोति वा (आ) समन्तात् (हि) यतः (अस्थात्) तिष्ठति (वपूंषि) रूपाणि (जाता) उत्पन्नानि (मिथुना) मिथुनौ परस्परसङ्गतौ (सचेते) सम्बध्नीतः (तमोहना) यौ तमोहतस्तौ (तपुषः) तपत्यस्मिन् सूर्य्यस्तस्य दिनस्य मध्ये (बुध्ने) बध्नन्त्यापो यस्मिँस्तस्मिन्नन्तरिक्षे (एता) एतौ वर्त्तमानौ ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यथा विद्युत्सूर्यं सूर्यश्चन्द्रादिकं प्रकाशयति तमो हन्ति तथैव परस्परस्यानुकूला भूत्वा सद्व्यवहारे सचन्ताम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसा विद्युत सूर्य, सूर्य-चंद्र इत्यादींना प्रकाशित करतो व अंधकाराचा नाश करतो. तसेच परस्पर अनुकूल बनून व्यवहारात तत्पर व्हा. ॥ ३ ॥