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इ॒नोत पृ॑च्छ॒ जनि॑मा कवी॒नां म॑नो॒धृतः॑ सु॒कृत॑स्तक्षत॒ द्याम्। इ॒मा उ॑ ते प्र॒ण्यो॒३॒॑ वर्ध॑माना॒ मनो॑वाता॒ अध॒ नु धर्म॑णि ग्मन्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

inota pṛccha janimā kavīnām manodhṛtaḥ sukṛtas takṣata dyām | imā u te praṇyo vardhamānā manovātā adha nu dharmaṇi gman ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒ना। उ॒त। पृ॒च्छ॒। जनि॑म। क॒वी॒नाम्। म॒नः॒ऽधृतः॑। सु॒ऽकृतः॑। त॒क्ष॒त॒। द्याम्। इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। ते॒। प्र॒ऽन्यः॑। वर्ध॑मानाः। मनः॑ऽवाताः। अध॑। नु। धर्म॑णि। ग्म॒न्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:38» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् वा साधारण मनुष्यो ! जो (कवीनाम्) बुद्धिमान् लोगों के (मनोधृतः) विज्ञान के धारण करने और (सुकृतः) उत्तम कर्म करनेवाले पुरुष (उ) और (इमाः) ये वर्त्तमान (प्रण्यः) उत्तम नीतियुक्त (वर्द्धमानाः) बढ़ती हुई (मनोवाताः) मन के सदृश वेगवाली स्त्रियाँ (धर्मणि) धर्म व्यवहार में (नु) शीघ्र (ग्मन्) प्राप्त हों (अध) इसके अनन्तर जो (द्याम्) बिजुली को प्राप्त हों और जो लोग (ते) तुम्हारे (जनिमा) जन्मों को प्राप्त हों उन स्त्रियों (उत) वा उन (इना) समर्थ पुरुषों को आप (पृच्छ) पूछिये और आप लोग भी अविद्या को (तक्षत) काटिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष और स्त्रियाँ धर्म के अनुष्ठानपूर्वक बुद्धिमान् लोगों के लक्षणों को धारण कर प्रश्नोत्तर और अन्तःकरण को शुद्ध करके समर्थ होते हैं, वे पुरुष और वैसी स्त्रियाँ सब प्रकार वृद्धि को प्राप्त होती हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या या कवीनां मनोधृतः सुकृत उ इमा प्रण्यो वर्धमाना मनोवाता धर्मणि नु ग्मन् अध या द्यां प्राप्नुयुर्ये ते जनिमा ग्मन् ता उत तानिना त्वं पृच्छ। यूयमविद्यां तक्षत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इना) इनान् प्रभून् समर्थान् (उत) अपि (पृच्छ) (जनिमा) जन्मानि (कवीनाम्) मेधाविनाम् (मनोधृतः) मनो विज्ञानं धृतं यैस्ते (सुकृतः) ये शोभनं कर्म कुर्वन्ति ते (तक्षत) सूक्ष्मान् कुरुत (द्याम्) विद्युतम् (इमाः) वर्त्तमानाः (उ) (ते) तव (प्रण्यः) प्रकृष्टा नीतिर्यासां ताः (वर्द्धमानाः) वृद्धिशीलाः (मनोवाताः) मन इव वातो वेगो यासां ताः (अध) अध (नु) सद्यः (धर्मणि) (ग्मन्) प्राप्नुयुः ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये पुरुषाः स्त्रियश्च धर्मानुष्ठानपुरःसरं मेधाविलक्षणानि धृत्वा प्रश्नोत्तराणि विधायान्तःकरणं संशोध्य समर्था जायन्ते ते ताश्चैव सर्वतोऽधिवर्धन्ते ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष व स्त्रिया धर्माचे अनुष्ठान करून बुद्धिमानांप्रमाणे प्रश्नोत्तर व अंतःकरणाची शुद्धी करून समर्थ होतात ते पुरुष व स्त्रिया सर्व प्रकारची उन्नती करतात. ॥ २ ॥