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अग॑न्निन्द्र॒ श्रवो॑ बृ॒हद्द्यु॒म्नं द॑धिष्व दु॒ष्टर॑म्। उत्ते॒ शुष्मं॑ तिरामसि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agann indra śravo bṛhad dyumnaṁ dadhiṣva duṣṭaram | ut te śuṣmaṁ tirāmasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग॑न्। इ॒न्द्र॒। श्रवः॑। बृ॒हत्। द्यु॒म्नम्। द॒धि॒ष्व॒। दु॒स्तर॑म्। उत्। ते॒। शुष्म॑म्। ति॒रा॒म॒सि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:37» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त ! जिस (बृहत्) बड़े (दुष्टरम्) शत्रुओं से दुःख से उल्लङ्घन करने योग्य (श्रवः) अन्न वा श्रवण (द्युम्नम्) यश वा धन और (शुष्मम्) बल को विद्वान् लोग (अगन्) प्राप्त होते हैं वा जिस (ते) आपके पूर्वोक्त अन्न श्रवण यश धन और बल को हम लोग (उत्) उत्तम प्रकार (तिरामसि) तरे उल्लंघें अर्थात् उससे अधिक सम्पादन करें उस सबको आप (दधिष्व) धारण करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - उतना ही ऐश्वर्य्य राजा को धारण करना चाहिये कि जितना सेना और प्रजा के पालन के और मन्त्रियों की रक्षा के लिये पूरा होवै, ऐसा करने से बड़ा यश बढ़ै ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र यद्बृहद्दुष्टरं श्रवो द्युम्नं शुष्मं विद्वांसोऽगन् यत्ते वयमुत्तिरामसि तत्सर्वं त्वं दधिष्व ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अगन्) प्राप्नुवन्ति (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (श्रवः) अन्नं श्रवणं वा (बृहत्) महत् (द्युम्नम्) यशो धनं वा (दधिष्व) धर (दुष्टरम्) शत्रुभिर्दुःखेन तरितुमुल्लङ्घयितुं योग्यम् (उत्) उत्कृष्टे (ते) तव (शुष्मम्) बलम् (तिरामसि) तराम ॥१०॥
भावार्थभाषाः - तावदैश्वर्य्यं राज्ञा धर्त्तव्यं यावत्सेनायै प्रजापालनायाऽमात्यरक्षणायाऽलं स्यादेवं जाते सति महद्यशो वर्धेत ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - तितकेच ऐश्वर्य राजाने धारण केले पाहिजे ज्यामुळे सेना व प्रजा यांचे पालन व मंत्र्यांचे रक्षण व्हावे त्यामुळे महद् यश वाढते. ॥ १० ॥