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आ तू भ॑र॒ माकि॑रे॒तत्परि॑ ष्ठाद्वि॒द्मा हि त्वा॒ वसु॑पतिं॒ वसू॑नाम्। इन्द्र॒ यत्ते॒ माहि॑नं॒ दत्र॒मस्त्य॒स्मभ्यं॒ तद्ध॑र्यश्व॒ प्र य॑न्धि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tū bhara mākir etat pari ṣṭhād vidmā hi tvā vasupatiṁ vasūnām | indra yat te māhinaṁ datram asty asmabhyaṁ tad dharyaśva pra yandhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। तु। भ॒र॒। माकिः॑। ए॒तत्। परि॑। स्था॒त्। वि॒द्म। हि। त्वा॒। वसु॑ऽपतिम्। वसू॑नाम्। इन्द्र॑। यत्। ते॒। माहि॑नम्। दत्र॑म्। अस्ति॑। अ॒स्मभ्य॑म्। तत्। ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒। प्र। य॒न्धि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:36» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य के देनेवाले ! (यत्) जो (ते) आपका (माहिनम्) अतिश्रेष्ठ (दत्रम्) दान (अस्ति) है (तत्) उसे (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये आप (प्र, यन्धि) अच्छे प्रकार दीजिये और हे (हर्यश्व) वेगयुक्त घोड़ोंवाले आप (एतत्) इसको (माकिः) न (परि, ष्ठात्) सब ओर से रोकिये (हि) जिससे कि (वसूनाम्) धनों के (वसुपतिम्) स्वामी (त्वा) आपको हम लोग (विद्म) जानैं, इससे (तु) शीघ्र फिर आप इस सबको (आ) सब ओर से (भर) धारण करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् जनों को चाहिये कि सम्पूर्ण जनों के प्रति ऐसा उपदेश देवैं कि आप लोग दोषों को त्याग गुणों को धारण और धन और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होके अन्य सुपात्र पुरुषों के लिये देवैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! यत्ते माहिनं दत्रमस्ति तदस्मभ्यं त्वं प्रयन्धि। हे हर्य्यश्व भवानेतन्माकिः परिष्ठाद्धि वसूनां वसुपतिं त्वा वयं विद्म तु त्वमेतत्सर्वमाभर ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (तु) पुनः। अत्र ऋचीत्यादिना दीर्घः। (भर) धर (माकिः) निषेधे (एतत्) (परि) सर्वतः (स्थात्) तिष्ठेत् (विद्म) जानीयाम। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हि) यतः (त्वा) त्वाम् (वसुपतिम्) धनस्वामिनम् (वसूनाम्) धनानाम् (इन्द्र) ऐश्वर्य्यप्रद (यत्) (ते) तव (माहिनम्) महत्तमम् (दत्रम्) दानम् (अस्ति) (अस्मभ्यम्) (तत्) (हर्य्यश्व) हरयो वेगवन्तोऽश्वा यस्य तत्सम्बुद्धौ (प्र) (यन्धि) प्रयच्छ ॥९॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिः सर्वान्प्रत्येवमुपदेष्टव्यं भवन्तो दोषान् विहाय गुणान्धृत्वा धनैश्वर्य्यं प्राप्यान्येभ्यः सुपात्रेभ्यो देयम् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोकांनी संपूर्ण लोकांना असा उपदेश करावा की तुम्ही दोषांचा त्याग करून गुणांना धारण करा. धन व ऐश्वर्य प्राप्त करून इतर सुपात्र लोकांना द्या. ॥ ९ ॥