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स्ती॒र्णं ते॑ ब॒र्हिः सु॒त इ॑न्द्र॒ सोमः॑ कृ॒ता धा॒ना अत्त॑वे ते॒ हरि॑भ्याम्। तदो॑कसे पुरु॒शाका॑य॒ वृष्णे॑ म॒रुत्व॑ते॒ तुभ्यं॑ रा॒ता ह॒वींषि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stīrṇaṁ te barhiḥ suta indra somaḥ kṛtā dhānā attave te haribhyām | tadokase puruśākāya vṛṣṇe marutvate tubhyaṁ rātā havīṁṣi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्ती॒र्णम्। ते॒। ब॒र्हिः। सु॒तः। इ॒न्द्र॒। सोमः॑। कृ॒ताः। धा॒नाः। अत्त॑वे। ते॒। हरि॑ऽभ्याम्। तत्ऽओ॑कसे। पु॒रु॒ऽशाका॑य। वृष्णे॑। म॒रुत्व॑ते। तुभ्य॑म्। रा॒ता। ह॒वींषि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:35» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) दरिद्रता के नाश करनेवाले ! (ते) आपका (स्तीर्णम्) ढंपा और (बर्हिः) बढ़ा हुआ जल वा (सुतः) उत्पन्न किया गया (सोमः) ऐश्वर्य्य का संयोग वा (कृताः) सिद्ध किये गये (धानाः) पके हुए अन्न विशेष वा (हरिभ्याम्) घोड़ों से संयुक्त वाहन पर बैठे हुए जो (ते) आपके जन और (तदोकसे) वाहनरूप स्थानवाले (पुरुशाकाय) अनेक प्रकार की शक्ति से (वृष्णे) वृष्टि करानेवाले (मरुत्वते) कार्य्य करानेवाले बहुत मनुष्यों के सहित विराजमान (तुभ्यम्) आपके लिये (अत्तवे) भोजन करने को जो (हवींषि) भोजन करने के योग्य अन्न आदि (राता) वर्त्तमान उनको भोगो ॥७॥
भावार्थभाषाः - सम्पूर्ण जन उत्तम पदार्थों के भोजन करनेवाले हों और अन्याय से इकट्ठे किये हुए किसी भी पदार्थ का भोग न करैं, इस प्रकार वर्त्ताव करने पर धनसामर्थ्य, विद्या और आयु बढ़ते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! ते स्तीर्णं बर्हिस्सुतस्सोमः कृता धाना हरिभ्यां युक्ते याने स्थिता यत्ते तदोकसे पुरुशाकाय वृष्णे मरुत्वते तुभ्यमत्तवे यानि हवींषि राता सन्ति तानि भुङ्क्ष्व ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तीर्णम्) आच्छादितम् (ते) तव (बर्हिः) वृद्धमुदकम्। बर्हिरित्युदकना०। निघं० १। १२। (सुतः) निष्पादितः (इन्द्र) दारिद्र्यविदारक (सोमः) ऐश्वर्य्ययोगः (कृताः) निष्पन्नाः (धानाः) पक्वान्नविशेषाः (अत्तवे) अत्तुम् (ते) (हरिभ्याम्) (तदोकसे) तद्यानमोकः स्थानं यस्य तस्मै (पुरुशाकाय) बहुशक्तये (वृष्णे) वर्षणशीलाय (मरुत्वते) मरुतो बहवो मनुष्याः कार्य्यसाधका विद्यन्ते यस्य तस्मै (तुभ्यम्) (राता) दत्तानि (हवींषि) अत्तुमर्हाण्यन्नादीनि ॥७॥
भावार्थभाषाः - सर्वे मनुष्या निमृष्टपदार्थभोक्तारस्स्युर्नैवाऽन्यायेनोपार्जितं किञ्चिदपि भुज्जीरन्नेवं वर्त्तमाने कृते धनशक्तिविद्याऽऽयूंषि वर्धन्ते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व लोकांनी उत्तम पदार्थांचे भोजन करावे. अन्यायाने एकत्र केलेल्या कोणत्याही पदार्थांचा भोग करू नये. अशा प्रकारचे आचरण करण्याने धन, सामर्थ्य, विद्या व आयुष्य वाढते. ॥ ७ ॥