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उपो॑ नयस्व॒ वृष॑णा तपु॒ष्पोतेम॑व॒ त्वं वृ॑षभ स्वधावः। ग्रसे॑ता॒मश्वा॒ वि मु॑चे॒ह शोणा॑ दि॒वेदि॑वे स॒दृशी॑रद्धि धा॒नाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upo nayasva vṛṣaṇā tapuṣpotem ava tvaṁ vṛṣabha svadhāvaḥ | grasetām aśvā vi muceha śoṇā dive-dive sadṛśīr addhi dhānāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उपो॒ इति॑। न॒य॒स्व॒। वृष॑णा। त॒पुः॒ऽपा। उ॒त। ई॒म्। अ॒व॒। त्वम्। वृ॒ष॒भ॒। स्व॒धा॒ऽवः॒। ग्रसे॑ताम्। अश्वा॑। वि। मु॒च॒। इ॒ह। शोणा॑। दि॒वेऽदि॑वे। स॒ऽदृशीः॑। अ॒द्धि॒। धा॒नाः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:35» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषभ) बलवान् (स्वधावः) अत्यन्त अन्नयुक्त (त्वम्) आप (इह) इस वाहन में जो (तपुष्पा) तपते हुए पदार्थों को रखनेवाले (वृषणा) बल और (शोणा) लालरङ्गयुक्त (अश्वा) शीघ्रगामी अग्नि आदि इन्धनों को (ग्रसेताम्) भक्षण करै उनमें कलाओं को (वि, मुच) छोड़ो (ईम्) जल को (उपो) उनके समीप में (नयस्व) पहुँचाओ (उत) और (दिवेदिवे) नित्य (सदृशीः) तुल्य परिणामवाले (धानाः) अग्नि से संस्कार किये अन्न विशेषों को (अद्धि) भक्षण करो, उनमें बोझों को (अव) पेश करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो शिल्पी जन अग्नि जल आदि पदार्थों को उत्तम कलाओं से युक्त वाहनों में संयुक्त करके चलाते हैं, वे दारिद्र्य को छोड़ के धन और धान्य को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे वृषभ स्वधावस्त्वमिह यौ तपुष्पा वृषणा शोणाऽश्वेन्धनानि ग्रसेतां तत्र कला विमुचेमुपो नयस्व। उत दिवेदिवे सदृशीर्धाना अद्धि तत्र सम्भारानव ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उपो) सामीप्ये (नयस्व) (वृषणा) बलिष्ठौ (तपुष्पा) यौ तपूंषि पातो रक्षतस्तौ (उत) (ईम्) उदकम्। ईमित्युदकना०। निघं० १। १२। (अव) प्रवेशय (त्वम्) (वृषभ) बलिष्ठ (स्वधावः) पुष्कलान्नयुक्त (ग्रसेताम्) (अश्वा) सद्योगामिनौ (वि) (मुच) त्यज (इह) अस्मिन् याने (शोणा) रक्तगुणविशिष्टौ (दिवेदिवे) नित्यम् (सदृशीः) समाना गतीः (अद्धि) भुङ्क्ष्व (धानाः) अग्निसंस्कृतान्नविशेषान् ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये शिल्पिनो मनुष्या अग्निजलादीन् पदार्थान् सुकलायुक्तेषु यानेषु संयुज्य चालयन्ति ते दारिद्र्यं विमुच्य धनधान्यमाप्नुवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे कारागीर अग्नी, जल इत्यादी पदार्थांना उत्तम यंत्रयुक्त वाहनांमध्ये संयुक्त करून चालवितात ते दारिद्र्य नाहीसे करून धनधान्य प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥