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ए॒तद्वचो॑ जरित॒र्मापि॑ मृष्ठा॒ आ यत्ते॒ घोषा॒नुत्त॑रा यु॒गानि॑। उ॒क्थेषु॑ कारो॒ प्रति॑ नो जुषस्व॒ मा नो॒ नि कः॑ पुरुष॒त्रा नम॑स्ते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etad vaco jaritar māpi mṛṣṭhā ā yat te ghoṣān uttarā yugāni | uktheṣu kāro prati no juṣasva mā no ni kaḥ puruṣatrā namas te ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒तत्। वचः॑। ज॒रि॒तः॒। मा। अपि॑। मृ॒ष्ठाः॒। आ। यत्। ते॒। घोषा॑न्। उत्ऽत॑रा। यु॒गानि॑। उ॒क्थेषु॑। का॒रो॒ इति॑। प्रति॑। नः॒। जु॒ष॒स्व॒। मा। नः॒। नि। क॒रिति॑ कः। पु॒रु॒ष॒ऽत्रा। नमः॑। ते॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:33» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जरितः) प्रशंसा करनेवाले आप ! (एतत्) इस (वचः) वचन को (मा) नहीं (अपिमृष्ठाः) सहो (ते) आपके (यत्) जो (उत्तरा) आगे के (युगानि) वर्ष (घोषान्) वाणी के प्रयोगों को प्राप्त होवे वह (उक्थेषु) प्रशंसा करने योग्य व्यवहारों में (नः) हम लोगों को प्राप्त होवैं। हे (कारो) हे कर्त्ता पुरुष ! उनसे (नः) हम लोगों की (प्रति, आ, जुषस्व) सेवा करो हम (पुरुषत्रा) पुरुषों का (मा, नि, कः) अपकार मत करो इससे (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार हो ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जितना भूतकाल गया, उसमें व्यतीत हुए कर्मों के शेष करने योग्य कार्य्य को जान के वर्त्तमान और भविष्यत् काल में जिस प्रकार उन्नति हो के विघ्न निवृत्त होवें, वैसे ही करो ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे जरितस्त्वमेतद्वचो माऽपि मृष्ठास्ते यद्यान्युत्तरा युगानि घोषान् प्राप्नुयुस्तान्युक्थेषु नोऽस्मान् प्राप्नुवन्तु। हे कारो तैर्नोऽस्मान्प्रत्याजुषस्व पुरुषत्रा नो मा नि कोऽतस्ते नमोऽस्तु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एतत्) (वचः) (जरितः) प्रशंसक (मा) निषेधे (अपि) (मृष्ठाः) सहेः। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (आ) (यत्) यानि (ते) तव (घोषान्) वाक्प्रयोगान् (उत्तरा) उत्तराणि युगानि वर्षाणि (उक्थेषु) प्रशंसनीयेषु व्यवहारेषु (कारो) यः करोति तत्सम्बुद्धौ (प्रति) (नः) अस्मान् (जुषस्व) सेवस्व (मा) (नः) अस्मान् (नि) (कः) निकुर्य्याः (पुरुषत्रा) पुरुषान् (नमः) (ते) तुभ्यम् ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यावान् भूतकालो गतस्तत्रत्यानां कर्मणां शिष्टं कार्य्यं कर्त्तव्यं विज्ञाय वर्त्तमाने भविष्यति च यथोन्नतिर्भूत्वा विघ्नानि निवर्त्तेरँस्तथैवाऽनुतिष्ठत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! भूतकाळात झालेले कार्य व त्यापैकी शेष कार्य जाणून वर्तमान व भविष्यकाळात ज्याप्रकारे उन्नती होऊन विघ्न नाहीसे होईल असे करा. ॥ ८ ॥