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न ते॑ दू॒रे प॑र॒मा चि॒द्रजां॒स्या तु प्र या॑हि हरिवो॒ हरि॑भ्याम्। स्थि॒राय॒ वृष्णे॒ सव॑ना कृ॒तेमा यु॒क्ता ग्रावा॑णः समिधा॒ने अ॒ग्नौ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na te dūre paramā cid rajāṁsy ā tu pra yāhi harivo haribhyām | sthirāya vṛṣṇe savanā kṛtemā yuktā grāvāṇaḥ samidhāne agnau ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। ते॒। दू॒रे। प॒र॒मा। चि॒त्। रजां॑सि। आ। तु। प्र। या॒हि॒। ह॒रि॒ऽवः॒। हरि॑ऽभ्याम्। स्थि॒राय॑। वृष्णे॑। सव॑ना। कृ॒ता। इ॒मा। यु॒क्ताः। ग्रावा॑णः। स॒म्ऽइ॒धा॒ने। अ॒ग्नौ॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:30» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (हरिवः) उत्तम घोड़ों के वाहनों से युक्त ! आप (हरिभ्याम्) घोड़ों से (प्र) (आ, याहि) आइये ऐसा करने से (परमा) उत्तम (रजांसि) लोकों के स्थान (ते) आपके (दूरे) दूर (न) नहीं होंगे जो (समिधाने) हवन करने योग्य प्रदीप्त किये जाते हुए (अग्नौ) अग्नि में (स्थिराय) दृढ़ (वृष्णे) बलवान् के लिये (कृता) किये गये (इमा) इन (सवना) ऐश्वर्य वृद्धि के साधक कर्मों को करो तो (तु) तो (युक्ताः) उद्यत (ग्रावाणः) मेघ (चित्) भी बहुत से होवें ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य यदि शीघ्र चलनेवाले घोड़ों से देशान्तर जाने की इच्छा करें, तो सब समीप ही है। यदि नियम से अग्नि को प्रज्वलित कर उसमें होम करें, तो वर्षा होना सुगम ही जानो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे हरिवस्त्वं हरिभ्यां प्रयाह्येवं कृते परमा रजांसि ते दूरे न भविष्यन्ति यदि समिधानेऽग्नौ स्थिराय वृष्णे कृतेमा सवना कुर्य्यास्तदा तु युक्ता ग्रावाणश्चिद्बहवो भवेयुः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) निषेधे (ते) तव (दूरे) (परमा) परमाण्युत्कृष्टानि (चित्) अपि (रजांसि) लोकस्थानानि (आ) (तु) (प्र) (याहि) (हरिवः) प्रशस्ताऽश्वयानयुक्त (हरिभ्याम्) अश्वाभ्याम् (स्थिराय) (वृष्णे) बलाय (सवना) ऐश्वर्यसाधकानि कर्माणि (कृता) कृतानि (इमा) इमानि (युक्ताः) उद्युक्ताः (ग्रावाणः) मेघाः। ग्रावाणः इति मेघना०। निघं० १। १०। (समिधाने) प्रदीप्यमाने (अग्नौ) वह्नौ ॥२॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्याः शीघ्रगाम्यश्वैर्देशान्तरं जिगमिषेयुस्तर्हि सर्वं सनीडमेवास्ति। यदि नियमेन वह्निं प्रज्वाल्य तत्र हविर्जुहुयुस्तर्हि वर्षापि सुगमैवास्तीति ज्ञेयम् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -माणसांनी जर लवकर चालणाऱ्या घोड्यांद्वारे देशान्तरी जाण्याची इच्छा केली तर सर्व समीप असते. जर नियमाने अग्नी प्रज्वलित करून त्यात होम केल्यास वृष्टी होणे सुगम आहे, हे जाणा. ॥ २ ॥