वांछित मन्त्र चुनें

एको॒ द्वे वसु॑मती समी॒ची इन्द्र॒ आ प॑प्रौ पृथि॒वीमु॒त द्याम्। उ॒तान्तरि॑क्षाद॒भि नः॑ समी॒क इ॒षो र॒थीः स॒युजः॑ शूर॒ वाजा॑न्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eko dve vasumatī samīcī indra ā paprau pṛthivīm uta dyām | utāntarikṣād abhi naḥ samīka iṣo rathīḥ sayujaḥ śūra vājān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

एकः॑। द्वे इति॑। वसु॑मती॒ इति॒ वसु॑ऽमती। स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची। इन्द्रः॑। आ। प॒प्रौ॒। पृ॒थि॒वीम्। उ॒त। द्याम्। उ॒त। अ॒न्तरि॑क्षात्। अ॒भि। नः॒। स॒म्ऽई॒के। इ॒षः। र॒थीः। स॒ऽयुजः॑। शू॒र॒। वाजा॑न्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:30» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) दुष्टजनों के नाशकारक ! जैसे (एकः) सहायरहित अकिल्ली (रथीः) प्रशंसनीय रथरूप वाहन के सहित (इन्द्रः) बिजुली (द्वे) दो (समीची) समानता को प्राप्त (वसुमती) बहुत धनों से युक्त (पृथिवीम्) अन्तरिक्ष वा भूमि को (उत) और भी (द्याम्) प्रकाश को (आ) (पप्रौ) पूर्ण करती (समीके) समीप में (अन्तरिक्षात्) मध्य में वर्त्तमान अवकाश से (सयुजः) तुल्यता के साथ परस्पर मिले हुए मित्र जन (नः) हम लोगों के लिये (इषः) इच्छाओं को (उत) और (वाजान्) अन्न आदि वस्तुओं को (अभि) सब ओर से पूर्ण करते वे संपूर्ण जनों से सत्कार करने योग्य हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो भूमि के सदृश प्रजाओं के धारण करने और बिजुली के सदृश अतिउत्तम ऐश्वर्य्य के देनेवाले प्रजाजन हों, वे सम्पूर्ण राज्य की रक्षा कर सकें ॥११॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे शूर यथैको रथीरिन्द्रो द्वे समीची वसुमती पृथिवीमुत द्यां चापप्रौ समीकेऽन्तरिक्षात्सयुजो नोऽस्मभ्यमिष उत वाजानभि पप्रुः ते सर्वैः सत्कर्त्तव्याः ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एकः) असहायः (द्वे) (वसुमती) बहवो वसवो विद्यन्ते ययोस्ते (समीची) ये सम्यगञ्चतः समानं प्राप्नुतस्ते (इन्द्रः) विद्युत् (आ) (पप्रौ) प्राति (पृथिवीम्) अन्तरिक्षं भूमिं वा (उत) अपि (द्याम्) प्रकाशम् (उत) अपि (अन्तरिक्षात्) मध्यस्थादवकाशात् (अभि) आभिमुख्ये (नः) अस्मभ्यम् (समीके) समीपे (इषः) इच्छाः (रथीः) प्रशस्तरथयुक्तः (सयुजः) ये समानं युञ्जते ते (शूर) दुष्टानां हिंसक (वाजान्) अन्नादीन् ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये भुमिवत्प्रजाधारका विद्युद्वत्परमैश्वर्यप्रदाः प्रजाजनाः स्युस्ते सर्वं राज्यं रक्षितुं शक्नुयुः ॥११॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे भूमीप्रमाणे प्रजेला धारण करणारे व विद्युतप्रमाणे अत्यंत उत्तम ऐश्वर्य देणारे प्रजाजन असतील ते संपूर्ण राज्याचे रक्षण करू शकतात. ॥ ११ ॥