वांछित मन्त्र चुनें

इळा॑यास्त्वा प॒दे व॒यं नाभा॑ पृथि॒व्या अधि॑। जात॑वेदो॒ नि धी॑म॒ह्यग्ने॑ ह॒व्याय॒ वोळ्ह॑वे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iḻāyās tvā pade vayaṁ nābhā pṛthivyā adhi | jātavedo ni dhīmahy agne havyāya voḻhave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इळा॑याः। त्वा॒। प॒दे। व॒यम्। नाभा॑। पृ॒थि॒व्याः। अधि॑। जात॑ऽवेदः। नि। धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। ह॒व्याय॑। वोळ्ह॑वे॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:29» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:32» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! जैसे (वयम्) हम लोग (इडायाः) पृथिवी के (अधि) ऊपर (पदे) प्राप्त होने पर (पृथिव्याः) अन्तरिक्ष के (नाभा) मध्य में (हव्याय) प्रशंसा करने योग्य (वोढवे) वाहन के लिये (त्वा) उस (जातवेदः) धनों के उत्पन्नकर्त्ता (अग्ने) अग्नि को (नि) (धीमहि) उत्तम प्रकार धारण करें, वैसे ही आप लोग भी धारण करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग इस अग्नि की पृथिवी के ऊपर और अन्तरिक्ष के मध्य में उत्तम प्रकार परीक्षा ले के वाहन आदि चलाने के लिये अग्नि को धारण करते हैं, वे धनयुक्त होते हैं ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो यथा वयमिडाया अधि पदे पृथिव्या नाभा हव्याय वोढवे त्वा तं जातवेदोऽग्ने जातवेदसमग्निं निधीमहि तथैव यूयमपि निधत्त ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इडायाः) पृथिव्याः (त्वा) तम् (पदे) प्राप्ते (वयम्) (नाभा) मध्ये (पृथिव्याः) अन्तरिक्षस्य (अधि) उपरि (जातवेदः) जातवित्तम् (नि) (धीमहि) नितरां धरेम (अग्ने) अग्निम्। अत्र सर्वत्र पुरुषव्यत्ययः। (हव्याय) प्रशंसनीयाय (वोढवे) वाहनाय ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। य इमं वह्निं पृथिव्या उपर्य्यन्तरिक्षस्य मध्ये सुपरीक्ष्य यानादिचालनायाऽग्निं निदधति ते निधिमन्तो भवन्ति ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक पृथ्वीवर व अंतरिक्षात उत्तम प्रकारे परीक्षा करून वाहन इत्यादीमध्ये चालविण्यासाठी अग्नीचा उपयोग करतात ते श्रीमंत होतात. ॥ ४ ॥