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माध्य॑न्दिने॒ सव॑ने जातवेदः पुरो॒ळाश॑मि॒ह क॑वे जुषस्व। अग्ने॑ य॒ह्वस्य॒ तव॑ भाग॒धेयं॒ न प्र मि॑नन्ति वि॒दथे॑षु॒ धीराः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mādhyaṁdine savane jātavedaḥ puroḻāśam iha kave juṣasva | agne yahvasya tava bhāgadheyaṁ na pra minanti vidatheṣu dhīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

माध्य॑न्दिने। सव॑ने। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। पु॒रो॒ळाश॑म्। इ॒ह। क॒वे॒। जु॒ष॒स्व॒। अग्ने॑। य॒ह्वस्य॑। तव॑। भा॒ग॒ऽधेय॑म्। न। प्र। मि॒न॒न्ति॒। वि॒दथे॑षु। धीराः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:28» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:31» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कौन मनुष्य सुखी होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) विज्ञान से युक्त (कवे) उत्तम बुद्धिमान् (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजयुक्त ! आप (इह) इस संसार में जो (धीराः) योगी जन (यह्वस्य) श्रेष्ठ (तव) आपके (विदथेषु) विज्ञान वा संग्रामों में (भागधेयम्) भाग्य को (न) नहीं (प्र) (मिनन्ति) नाश करते हैं उस शिक्षा से सहित होकर (माध्यन्दिने) दिन के मध्य समय के (सवने) होम आदि कर्म में अग्नि के सदृश (पुरोडाशम्) उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न आदि का (जुषस्व) सेवन करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रातःकाल तथा दिन के मध्यभाग समय के होमों को करके उत्तम प्रकार छौंकने आदि से संस्कारयुक्त नित्य नियमित अन्न का भोजन करते हैं, वे ही भाग्यशाली होकर बड़े सुख और निश्चित विजय को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ के सुखिनो भवन्तीत्याह।

अन्वय:

हे जातवेदः कवेऽग्ने त्वमिह ये धीरा यह्वस्य तव विदथेषु भागधेयं न प्रमिनन्ति तच्छिक्षया सहितस्सन्माध्यन्दिने सवनेऽग्निरिव पुरोडाशं जुषस्व ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (माध्यन्दिने) मध्यदिनसम्बन्धिनि (सवने) होमादिकर्मणि (जातवेदः) उत्पन्नविज्ञान (पुरोडाशम्) सुसंस्कृतमन्नादिकम् (इह) अस्मिन्संसारे (कवे) प्राप्तप्रज्ञ (जुषस्व) (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (यह्वस्य) महतः। यह्व इति महन्ना०। निघं० ३। ३। (तव) (भागधेयम्) भाग्यम् (न) निषेधे (प्र) (मिनन्ति) प्रहिंसन्ति (विदथेषु) विज्ञानेषु सङ्ग्रामेषु वा (धीराः) योगिनः ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः प्रातर्मध्याह्नसवने कृत्वा सुसंस्कृतान्नं मितं भुञ्जते त एव भाग्यशालिनः सन्तो महत्सुखं निश्चितं विजयं च प्राप्नुवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे प्रातःकाळी व दिवसाच्या मध्यभागी होम करून उत्तम प्रकारे संस्कारयुक्त अन्न नित्य नियमित खातात, तेच भाग्यशाली बनून अत्यंत सुख व निश्चित विजय प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥