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स॒मि॒ध्यमा॑नो अध्व॒रे॒३॒॑ग्निः पा॑व॒क ईड्यः॑। शो॒चिष्के॑श॒स्तमी॑महे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samidhyamāno adhvare gniḥ pāvaka īḍyaḥ | śociṣkeśas tam īmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒म्ऽइ॒ध्यमा॑नः। अ॒ध्व॒रे। अ॒ग्निः। पा॒व॒कः। ईड्यः॑। शो॒चिःऽके॑शः। तम्। ई॒म॒हे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:27» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अध्वरे) अहिंसारूप यज्ञ में (समिध्यमानः) उत्तम रीति से प्रकाशमान (शोचिष्केशः) केशों के सदृश तेजों से युक्त (पावकः) पवित्र करनेवाला (अग्निः) बिजुली के सदृश (ईड्यः) स्तुति करने योग्य होवे (तम्) उसकी हम लोग (ईमहे) याचना करते हैं, आप लोग भी इसका सेवन करिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इस संसार में अग्निरूप पदार्थ ही सम्पूर्ण पदार्थों से श्रेष्ठ है, इसलिये इस अग्निविषयिणी विद्या की प्रार्थना करनी योग्य है, वैसे ही विद्वान् लोग सम्पूर्ण मनुष्यों में श्रेष्ठ और उनकी विद्याप्राप्ति के लिये प्रार्थना करनी चाहिये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या योऽध्वरे समिध्यमानः शोचिष्केशः पावकोऽग्निरिवेड्यो भवेत्तं वयमीमहे यूयमप्येतं सेवध्वम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (समिध्यमानः) सम्यक्प्रदीप्यमानः (अध्वरे) अहिंसामये यज्ञे (अग्निः) विद्युदिव (पावकः) पवित्रकर्त्ता (ईड्यः) स्तोतुमर्हः (शोचिष्केशः) शोचींषि तेजांसि केशा इव यस्य सः (तम्) (ईमहे) याचामहे ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽस्मिन् जगत्यग्निरेव सर्वेभ्यो महानत एतद्विद्या याचनीयास्ति तथैव विद्वांसः सर्वेषु महान्तश्चैतद्विद्याप्राप्तये याचनीयाः सन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अग्नीरूप पदार्थच संपूर्ण पदार्थात श्रेष्ठ आहेत. त्यासाठी या अग्निविषयक विद्येची प्रार्थना करणे योग्य आहे, तसेच विद्वान लोकांनी संपूर्ण माणसातील श्रेष्ठ लोकांकडून विद्याप्राप्तीसाठी प्रार्थना करावी. ॥ ४ ॥