वांछित मन्त्र चुनें

अग्ने॒ विश्वे॑भिर॒ग्निभि॑र्दे॒वेभि॑र्महया॒ गिरः॑। य॒ज्ञेषु॒ य उ॑ चा॒यवः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne viśvebhir agnibhir devebhir mahayā giraḥ | yajñeṣu ya u cāyavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। विश्वे॑भिः। अ॒ग्निऽभिः॑। दे॒वेभिः॑। म॒ह॒य॒। गिरः॑। य॒ज्ञेषु॑। ये। ऊँ॒ इति॑। चा॒यवः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:24» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! (ये) जो पुरुष (यज्ञेषु) संगति के योग्य व्यवहारों में (चायवः) सत्कार योग्य हों उनका ही (अग्निभिः) अग्नियों के सदृश तेजयुक्त (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (देवेभिः) श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभावयुक्त विद्वानों के साथ (महय) सत्कार करो (उ) और उन्हीं लोगों की (गिरः) उत्तम प्रकार शिक्षायुक्त वाणियों का प्रमाण मानो ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो राजपुरुष इस संसार में उत्तम कार्य्यों के कर्त्ता हों, उनका सब लोग सत्कार करें और जो दुष्ट कर्म करते हों, उनका अपमान करें ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने ! ये यज्ञेषु चायवस्स्युस्तानेवाग्निभिरिव विश्वेभिर्देवेभिस्सह महय उ एषां गिरः सत्कुरु ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (विश्वेभिः) समग्रैः (अग्निभिः) अग्निभिरिव वर्त्तमानैः (देवेभिः) दिव्यगुणकर्मस्वभावैर्विद्वद्भिः (महय) पूजय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (यज्ञेषु) सङ्गन्तव्येषु व्यवहारेषु (ये) (उ) (चायवः) सत्कर्त्तारः ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये राजजना अत्र जगत्युत्तमानि कर्म्माणि कुर्युस्ते सर्वैः सत्कर्त्तव्या ये च दुष्टानि तेऽपमाननीयास्स्युः ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजपुरुष या जगात उत्तम कार्य करणारे असतात त्यांचा सर्व लोकांनी सत्कार करावा व दुष्ट कर्म करणाऱ्यांचा अपमान करावा. ॥ ४ ॥