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वि॒शां क॒विं वि॒श्पतिं॒ मानु॑षी॒रिषः॒ सं सी॑मकृण्व॒न्त्स्वधि॑तिं॒ न तेज॑से। स उ॒द्वतो॑ नि॒वतो॑ याति॒ वेवि॑ष॒त्स गर्भ॑मे॒षु भुव॑नेषु दीधरत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśāṁ kaviṁ viśpatim mānuṣīr iṣaḥ saṁ sīm akṛṇvan svadhitiṁ na tejase | sa udvato nivato yāti veviṣat sa garbham eṣu bhuvaneṣu dīdharat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒शाम्। क॒विम्। वि॒श्पति॑म्। मानु॑षीः। इषः॑। सम्। सी॒म्। अ॒कृ॒ण्व॒न्। स्वऽधि॑तिम्। न। तेज॑से। सः। उ॒त्ऽवतः॑। नि॒ऽवतः॑। या॒ति॒। वेवि॑षत्। सः। गर्भ॑म्। ए॒षु। भुव॑नेषु। दी॒ध॒र॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:2» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जिस (विशाम्) प्रजाओं में (कविम्) प्रविष्ट बुद्धिवाले (विश्पतिम्) प्रजापालक विद्वान् को (मानुषीः) मनुष्यों की (इषः) इच्छा (तेजसे) तेज के लिये (स्वधितिम्) वज्र के (न) समान (सीम्) सब ओर से (अकृण्वन्) परिपूर्ण करती हैं (सः) वह (उद्वतः) ऊपर से और (निवतः) नीचे के मार्गों को (संयाति) अच्छे प्रकार जाता है और (सः) वह (एषु) इन (भुवनेषु) स्थिति करने के आधाररूप लोक-लोकान्तरों में (वेविषत्) निरन्तर व्याप्त होता है और (गर्भम्) गर्भ को (दीधरत्) धारण करता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जैसे गर्भ अदृश्य होता है, वैसे अग्नि भी सब पदार्थों में वर्त्तमान है, जो मनुष्य इसको साधक करें तो इस अग्नि से युक्त यानों से भूमि और आकाश मार्गों को और नीचे ऊपरली गतियों को कर सकें और प्रजा भी पाल सकें ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यं विशां कविं विश्पतिं मानुषीरिषस्तेजसे स्वधितिं न सीमकृण्वन् स उद्वतो निवतो संयाति स एषु भुवनेषु वेविषद्नर्भं दीधरत् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विशाम्) प्रजानाम् (कविम्) क्रान्तप्रज्ञम् (विश्पतिम्) प्रजापालकम् (मानुषीः) मनुष्याणामिमाः (इषः) इच्छा (सम्) (सीम्) सर्वतः (अकृण्वन्) (स्वधितिम्) वज्रम् (न) इव (तेजसे) (सः) (उद्वतः) उपस्थितान् मार्गान् (निवतः) न्यग्भूतानधस्थान् (याति) गच्छति (वेविषत्) भृशं व्याप्नोति (सः) (गर्भम्) (एषु) (भुवनेषु) स्थित्यधिकरणेषु (दीधरत्) धारयति ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यथा गर्भोऽदृश्यो भवति तथा वह्निरपि सर्वेषु पदार्थेषु वर्त्तते यदि मनुष्या इमं साधकं कुर्युस्तर्ह्येतद्युक्तेन यानैर्भूम्याकाशमार्गानध ऊर्ध्वगतींश्च कर्तुं शक्नुयुः प्रजाश्च पालयितुम् ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा गर्भ अदृश्य असतो तसा अग्नीही सर्व पदार्थात वर्तमान असतो. जो माणूस त्याची साधना करतो तो या अग्नीने युक्त यानांनी भूमी व आकाश मार्गाने वर-खाली गती करू शकतो व प्रजेचे पालनही करू शकतो. ॥ १० ॥