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स त्वं नो॑ रा॒यः शि॑शीहि॒ मीढ्वो॑ अग्ने सु॒वीर्य॑स्य। तुवि॑द्युम्न॒ वर्षि॑ष्ठस्य प्र॒जाव॑तोऽनमी॒वस्य॑ शु॒ष्मिणः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa tvaṁ no rāyaḥ śiśīhi mīḍhvo agne suvīryasya | tuvidyumna varṣiṣṭhasya prajāvato namīvasya śuṣmiṇaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। त्वम्। नः॒। रा॒यः। शि॒शी॒हि॒। मीढ्वः॑। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽवीर्य॑स्य। तुवि॑ऽद्युम्न। वर्षि॑ष्ठस्य। प्र॒जाऽव॑तः। अ॒न॒मी॒वस्य॑। शु॒ष्मिणः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:16» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मीढ्वः) सुखों के दाता (तुविद्युम्न) बहुत प्रकार के धन वा यश से युक्त (अग्ने) अग्नि के समान तेजोवान् ! (सः) वह (त्वम्) आप (नः) हम लोगों के लिये (सुवीर्य्यस्य) उत्तम वीरों में उत्पन्न (वर्षिष्ठस्य) अतिवृद्ध और (प्रजावतः) अत्यन्त प्रजायुक्त (अनमीवस्य) रोगरहित (शुष्मिणः) अत्यन्त बल सहित पुरुष के (रायः) धनों को (शिशीहि) अति बढ़ाइये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धन से सेना श्रेष्ठता प्रजा आरोग्य और बल को बढ़ाते हैं, वे लोग सर्वदा बहुत धनवाले होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मीढ्वस्तुविद्युम्नाग्ने स त्वं नः सुवीर्यस्य वर्षिष्ठस्य प्रजावतोऽनमीवस्य शुष्मिणो रायः शिशीहि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (रायः) धनानि (शिशीहि) तीव्रान् संपादय (मीढ्वः) सुखानां सेचकः (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (सुवीर्यस्य) शोभनेषु वीरेषु भवस्य (तुविद्युम्न) तुविर्बहुविधं धनं यशो वा यस्य (वर्षिष्ठस्य) अतिशयेन वृद्धस्य (प्रजावतः) बह्व्यः प्रजा विद्यन्ते यस्य तस्य (अनमीवस्य) नीरोगस्य (शुष्मिणः) बहुबलयुक्तस्य ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धनेन सैन्यं श्रेष्ठतां प्रजामारोग्यं बलं च वर्धयन्ति ते सर्वदाऽग्रश्रियो भवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धनाने सेना, श्रेष्ठत्व, प्रजा, आरोग्य व बल वाढवितात ती नेहमी धनवान असतात. ॥ ३ ॥