वांछित मन्त्र चुनें

व॒यं ते॑ अ॒द्य र॑रि॒मा हि काम॑मुत्ता॒नह॑स्ता॒ नम॑सोप॒सद्य॑। यजि॑ष्ठेन॒ मन॑सा यक्षि दे॒वानस्रे॑धता॒ मन्म॑ना॒ विप्रो॑ अग्ने॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayaṁ te adya rarimā hi kāmam uttānahastā namasopasadya | yajiṣṭhena manasā yakṣi devān asredhatā manmanā vipro agne ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒यम्। ते॒। अ॒द्य। र॒रि॒म॒। हि। काम॑म्। उ॒त्ता॒नऽह॑स्ताः। नम॑सा। उ॒प॒ऽसद्य॑। यजि॑ष्ठेन। मन॑सा। य॒क्षि॒। दे॒वान्। अस्रे॑धता। मन्म॑ना। विप्रः॑। अ॒ग्ने॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:14» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:14» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक और अध्येता के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! (हि) जिससे (विप्रः) बुद्धिमान् आप (यजिष्ठेन) अत्यन्त संलग्न और (अस्रेधता) नहीं खिन्न हुए (मन्मना) विज्ञान से युक्त (मनसा) चित्त से हम (देवान्) विद्वानों का (यक्षि) सङ्ग कीजिये उससे (अद्य) इस समय (उत्तानहस्ताः) हाथ उठाये हुए (वयम्) हम लोग आपको (नमसा) सत्कार से वा अन्न आदि से (उप, सद्य) समीप प्राप्त हो के (ते) आपके (कामम्) मनोरथ को (ररिम) देवें ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे अध्यापक लोग शिष्यों की विद्याविषयिणी इच्छा को सन्तृप्त करते हैं, वैसे ही विद्यार्थी जन भी अध्यापकों के मनोरथों को सफल करें और सब काल में संपूर्ण पुरुष विद्या आदि शुभगुणों के देनेवाले होवें ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकाध्येतृविषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने हि विप्रस्त्वं यजिष्ठेनास्रेधता मन्मना मनसा अस्मान् देवान् यक्षि तस्मादद्य उत्तानहस्ता वयं त्वां नमसोपसद्य ते कामं ररिम ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वयम्) (ते) (अद्य) इदानीम् (ररिम) दद्याम (हि) यतः (कामम्) (उत्तानहस्ताः) उत्थापितकराः (नमसा) सत्कारेणान्नादिना वा (उप, सद्य) समीपं प्राप्य (यजिष्ठेन) अतिशयेन सङ्गतेन (मनसा) चित्तेन (यक्षि) सङ्गच्छसि (देवान्) विदुषः (अस्रेधता) अक्षीणेन (मन्मना) विज्ञानवता (विप्रः) मेधावी (अग्ने) विद्वन् ॥५॥
भावार्थभाषाः - यथाऽध्यापकाः शिष्याणां विद्येच्छाः पूरयन्ति तथैव विद्यार्थिनोऽप्यध्यापकानामभीष्टानि पूरयन्तु सर्वदा सर्वे विद्यादिशुभगुणानां दातारः स्युः ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे अध्यापक लोक शिष्यांची विद्येविषयीची इच्छा पूर्ण करतात तसे विद्यार्थ्यांनीही अध्यापकांचे मनोरथ सफल करावेत. नेहमी सर्वांनी विद्या इत्यादी शुभ गुण देणारे बनावे. ॥ ५ ॥