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अया॑मि ते॒ नम॑उक्तिं जुषस्व॒ ऋता॑व॒स्तुभ्यं॒ चेत॑ते सहस्वः। वि॒द्वाँ आ व॑क्षि वि॒दुषो॒ नि ष॑त्सि॒ मध्य॒ आ ब॒र्हिरू॒तये॑ यजत्र॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayāmi te namaüktiṁ juṣasva ṛtāvas tubhyaṁ cetate sahasvaḥ | vidvām̐ ā vakṣi viduṣo ni ṣatsi madhya ā barhir ūtaye yajatra ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अया॑मि। ते॒। नमः॑ऽउक्ति॑म्। जु॒ष॒स्व॒। ऋत॑ऽवः। तुभ्य॑म्। चेत॑ते। स॒ह॒स्वः॒। वि॒द्वान्। आ। व॒क्षि॒। वि॒दुषः॑। नि। ष॒त्सि॒। मध्ये॑। आ। ब॒र्हिः। ऊ॒तये॑। य॒ज॒त्र॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:14» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पढ़ने-पढ़ाने रूप विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋतावः) सत्यप्रकाशकशील ! मैं (ते) आपके (नमउक्तिम्) नमस्कारों के वचन को (अयामि) प्राप्त होता हूँ (जुषस्व) उसका आप आदरसहित ग्रहण कीजिये। हे (सहस्वः) अतिबलयुक्त वा संपूर्ण विद्या जाननेवाले जो (विद्वान्) विद्वान् ! आप (विदुषः) विद्वानों को (आ) (वक्षि) सबप्रकार उपदेश देते हो, ऐसे आपके साथ विद्वानों को प्राप्त होता हूँ। हे (यजत्र) पूजन करने योग्य ! जो आप (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (बर्हिः) अन्तरिक्ष के (मध्ये) मध्य में (आ) (नि) अच्छे प्रकार निश्चित (सत्सि) विराजो उस (चेतते) बोध देनेवाले (तुभ्यम्) आपके लिये नमस्काररूप वचन करता हूँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्यार्थी लोग नमस्कार आदि सेवा से अध्यापकों को प्रसन्न करें, वैसे अध्यापक लोग उत्तमशिक्षारूप विद्यादान से विद्यार्थियों को प्रसन्न सन्तुष्ट करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्ययनाध्यापनविषयमाह।

अन्वय:

हे ऋतावोऽहं ते नम उक्तिमयामि तां त्वं जुषस्व। हे सहस्वो यो विद्वाँस्त्वं विदुष आ वक्षि तेन त्वया सहाऽहं विदुषोऽयामि। हे यजत्र यस्त्वमूतये बर्हिर्मध्य आनिषत्सि तस्मै चेतते तुभ्यं नमउक्तिं विदधामि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयामि) प्राप्नोमि (ते) तव (नमउक्तिम्) नमसां नमस्काराणां वचनम् (जुषस्व) सेवस्व (ऋतावः) सत्यप्रकाशक (तुभ्यम्) (चेतते) प्रज्ञापकाय (सहस्वः) बहुबलयुक्त सकलविद्याविद्वा (विद्वान्) (आ) समन्तात् (वक्षि) वदसि (विदुषः) विपश्चितः (नि) निश्चितम् (सत्सि) निषीदसि (मध्ये) (आ) (बर्हिः) अन्तरिक्षस्य (उतये) रक्षणाद्याय (यजत्र) सङ्गन्तः ॥२॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्यार्थिनो नमस्कारादिसेवयाऽध्यापकान् प्रसादयेयुस्तथाऽध्यापकाः सुशिक्षादानेन विद्यार्थिनः सन्तोषयेयुः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे विद्यार्थी अध्यापकांना नमस्कार करून सेवा करतात व प्रसन्न ठेवतात तसे अध्यापक लोकांनी उत्तम शिक्षणरूपी विद्यादानाने विद्यार्थ्यांना प्रसन्न व संतुष्ट ठेवावे. ॥ २ ॥