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अग्ने॒ विश्वा॑नि॒ वार्या॒ वाजे॑षु सनिषामहे। त्वे दे॒वास॒ एरि॑रे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne viśvāni vāryā vājeṣu saniṣāmahe | tve devāsa erire ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। विश्वा॑नि। वार्या॑। वाजे॑षु। स॒नि॒षा॒म॒हे॒। त्वे इति॑। दे॒वासः। आ। ई॒रि॒रे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:11» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य विद्याओं से उत्तम प्रकार प्रकाशयुक्त विद्वन् पुरुष ! जिन (त्वे) आपके विषय में (देवासः) विद्वान् लोग हम लोगों को (आ) (ईरिरे) प्रेरणा करते हैं फिर प्रेरित हुए हम लोग (वाजेषु) सङ्ग्राम आदि व्यवहारों में (विश्वानि) सम्पूर्ण (वार्य्या) अच्छे प्रकार स्वीकार करने योग्य धनादि वस्तुओं को (सनिषामहे) यथाभाग प्राप्त होवें ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस धर्मयुक्त पुरुषार्थ में विद्वान् लोग तुमलोगों को प्रेरणा करें तो जैसे हम लोग उनकी आज्ञानुकूल वर्त्ताव करके विद्या और धन को प्राप्त होवें, वैसे ही उन पुरुषों की आज्ञानुसार वर्त्ताव करके आप लोग भी विद्या और धनयुक्त होइये ॥९॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् पुरुष के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह ग्यारहवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने ! यस्मिँस्त्वे देवासोऽस्मानेरिरे ते वयं वाजेषु विश्वानि वार्य्या सनिषामहे ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) पावकवद्विद्यया प्रकाशमान विद्वन् (विश्वानि) अखिलानि (वार्य्या) वर्त्तुमर्हाणि धनादीनि वस्तूनि (वाजेषु) सङ्ग्रामादिषु व्यवहारेषु (सनिषामहे) संभज्य प्राप्नुयाम (त्वे) त्वयि (देवासः) विद्वांसः (आ) (ईरिरे) प्रेरयन्ति ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यत्र धर्म्ये पुरुषार्थे विद्वांसो युष्मान् प्रेरयेयुर्यथा वयं तदाज्ञायां वर्तित्वा विद्यां धनं च प्राप्नुयाम तथा तत्र वर्त्तित्वा यूयमपि तादृशा भवत ॥९॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इत्येकादशं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या धर्मयुक्त पुरुषार्थात विद्वान लोक तुम्हाला प्रेरणा देतात तेव्हा आम्ही जसे त्यांच्या आज्ञेप्रमाणे वागून विद्या व धन प्राप्त करतो, तसेच त्यांच्या आज्ञेनुसार वागून तुम्हीही विद्या व धन प्राप्त करा. ॥ ९ ॥