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अ॒भि प्रयां॑सि॒ वाह॑सा दा॒श्वाँ अ॑श्नोति॒ मर्त्यः॑। क्षयं॑ पाव॒कशो॑चिषः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi prayāṁsi vāhasā dāśvām̐ aśnoti martyaḥ | kṣayam pāvakaśociṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। प्रयां॑सि। वाह॑सा। दा॒श्वान्। अ॒श्नो॒ति॒। मर्त्यः॑। क्षय॑म्। पा॒व॒कऽशो॑चिषः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:11» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (दाश्वान्) देनेवाला (मर्त्यः) मनुष्य (पावकशोचिषः) अग्नि की दीप्ति के सदृश दीप्तियुक्त विद्वान् पुरुष के (क्षयम्) विद्यास्थान को (अश्नोति) प्राप्त होता वह (वाहसा) उत्तम पदवी को प्राप्त होने से (प्रयांसि) कामना अभिलाषा के योग्य अन्न आदि को (अभि) प्राप्त होता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जब मनुष्य विद्वानों की विद्यापदवी को प्राप्त होते हैं, तब ही उनके मनोरथ पूर्ण होते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो दाश्वान्मर्त्यो पावकशोचिषः क्षयमश्नोति स वाहसा प्रयांस्यभ्यश्नोति ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभि) आभिमुख्ये (प्रयांसि) कमनीयान्यन्नादीनि (वाहसा) प्रापणेन (दाश्वान्) दाता (अश्नोति) प्राप्नोति (मर्त्यः) मनुष्यः (क्षयम्) निवासम् (पावकशोचिषः) पावकस्याग्नेः शोचिर्दीप्तिरिव शोचिर्यस्य विदुषस्तस्य ॥७॥
भावार्थभाषाः - यदा मनुष्या विदुषां विद्यास्थानं प्राप्नुवन्ति तदैव पूर्णकामा जायन्ते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा माणसांना विद्वानांची विद्या प्राप्त होते तेव्हाच त्यांचे मनोरथ पूर्ण होतात. ॥ ७ ॥