अ॒भि प्रयां॑सि॒ वाह॑सा दा॒श्वाँ अ॑श्नोति॒ मर्त्यः॑। क्षयं॑ पाव॒कशो॑चिषः॥
abhi prayāṁsi vāhasā dāśvām̐ aśnoti martyaḥ | kṣayam pāvakaśociṣaḥ ||
अ॒भि। प्रयां॑सि। वाह॑सा। दा॒श्वान्। अ॒श्नो॒ति॒। मर्त्यः॑। क्षय॑म्। पा॒व॒कऽशो॑चिषः॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
यो दाश्वान्मर्त्यो पावकशोचिषः क्षयमश्नोति स वाहसा प्रयांस्यभ्यश्नोति ॥७॥